प्रशांत महासागर में समुद्री जलस्तर दुनिया के औसत से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. वर्ल्ड मेटरियोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) की नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है. प्रशांत महासागर में तेजी से बढ़ रहे जलस्तर की वजह से सबसे ज्यादा खतरा आईलैंड वाले देशों को है. खास तौर से कम ऊंचाई वाले द्वीप.
समुद्री जलस्तर बढ़ने की वजह है बर्फ और ग्लेशियरों का पिघलना. ये पिघल रहे हैं बढ़ते तापमान की वजह से. तापमान बढ़ रहा है पेट्रोल-डीजल और कोयले को जलाने से. अब कहीं आग लगेगी. तो तापमान उठेगा ही. इसका असर वायुमंडल पर पड़ेगा. जो ग्लेशियर को पिघलाएगा. उसका पानी नदियों से होते हुए समंदर में जाएगा.
WMO की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय प्रशांत महासागर 3.4 मिलिमीट प्रति वर्ष की गति से बढ़ रहा है. यह दर पिछले तीन दशकों से है. जो कि बाकी दुनिया के सालाना औसत से कहीं ज्यादा है. इसकी जांच प्रशांत महासागर, उत्तरी और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में की गई. WMO के सेक्रेटरी जनरल सेलेस्टे साउलो ने कहा कि यह इंसानों की वजह से हो रहा है.
80 के दशक से अब ज्यादा आ रहे तटीय बाढ़
साउलो ने कहा कि इंसान जब तक जलवायु परिवर्तन रोकने और तापमान कम करने का काम नहीं करेगा. उसे प्रलय ही देखने को मिलेगा. समंदर जो अब तक इंसानों का दोस्त था, वो किसी भी समय दुश्मन बन जाएगा. दुनिया खुद ही देख रही है कि 1980 की तुलना में इस समय तटीय बढ़ा (Coastal Flooding) की संख्या और तीव्रता बढ़ती जा रही है.
पिछले साल प्रशांत महासागर में 34 से ज्यादा आपदाएं
साउलो ने बताया कि कुक आइलैंड और फ्रेंच पोलीनेसिया जहां पर तटीय बढ़ा पहले बहुत कम आते थे. अब बहुत ही ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से इनकी संख्या और इंटेसिटी तेजी से बढ़ती जा रही है. पिछले साल यानी 2023 में प्रशांत महासागर के इलाके में 34 से ज्यादा तूफान और बाढ़ जैसी घटनाए हुई हैं. इसकी वजह से 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सिर्फ एक तिहाई द्वीपों के पास अर्ली वॉर्निंग सिस्टम है. कुछ द्वीप तो समुद्री सतह से मात्र 3.3 से 6.5 फीट ऊंचे हैं. ये तो सबसे पहले डूबेंगे. इसके लिए जागरुकता लाने के लिए ही तुवालू द्वीप के विदेश मंत्री ने 2021 में यूएन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस पानी के अंदर किया था.