बिलासपुर: नगर निगम के अतिक्रमण दस्ते की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं. शहर के ठेले व्यवसायियों ने दस्ते पर अवैध वसूली, जप्त किए गए सामान की हेराफेरी और बिना रसीद के पैसे वसूलने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं. यह मामला तब उजागर हुआ जब ड्रायफ्रूट बेचने वाले कुछ ठेलेवालों ने बुधवार को मीडिया के सामने अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि दस्ते ने उनके ठेलों को जप्त कर न केवल भारी रकम वसूली बल्कि जप्त किए गए सामान में से महंगे ड्रायफ्रूट भी गायब कर दिए.
मुख्यमंत्री के दौरे से शुरू हुआ विवाद
मामले की शुरुआत पिछले नवंबर में हुई थी, जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के नगर आगमन के दौरान शहर के मुख्य मार्गों को साफ-सुथरा दिखाने के नाम पर अतिक्रमण दस्ते ने ठेले और दुकानों को हटाने की कार्रवाई शुरू की. 20 और 21 नवंबर को दस्ते ने शहर के प्रमुख बाजारों से ठेले जप्त किए और उनके मालिकों को जुर्माने के रूप में मोटी रकम देने पर मजबूर किया.
ठेलेवालों के अनुसार, दस्ते ने उनसे 32,500 रुपये की मांग की और चार ठेलेवालों से कुल 14,000 रुपये वसूले. इतना ही नहीं, जप्त किए गए ठेले और सामान के लिए कोई रसीद भी नहीं दी गई. जब ठेले वाले अपना सामान लेने पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि उनके ड्रायफ्रूट समेत कई मूल्यवान सामान गायब हो चुके थे.
बार-बार वसूली का आरोप
एक ठेलेवाले ने बताया कि जप्त ठेला छुड़ाने के लिए पैसे देने के कुछ दिनों बाद फिर से दस्ते ने उनसे पैसे वसूले. ठेलेवालों का कहना है कि यह सिलसिला लगातार जारी है, और दस्ते के अधिकारी हर बार ठेले लगाने के नाम पर उनसे वसूली करते हैं.
ड्रायफ्रूट गायब होने का आरोप
ड्रायफ्रूट बेचने वाले एक व्यवसायी ने खुलासा किया कि उनके ठेले पर रखे लगभग आधे ड्रायफ्रूट गायब थे, जब उन्हें उनका ठेला वापस मिला। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अतिक्रमण दस्ता जानबूझकर महंगे सामान गायब कर देता है और शिकायत करने पर कोई जवाब नहीं देता।
मीडिया के सामने ठेलेवालों की आपबीती
ठेलेवालों ने बुधवार को मीडिया के सामने अपनी व्यथा सुनाई. उन्होंने बताया कि अतिक्रमण दस्ता बिना किसी ठोस कारण के ठेले जप्त करता है और पैसे लिए बिना उन्हें वापस नहीं करता. एक ठेलेवाले ने कहा, “हम जैसे छोटे व्यवसायी रोज कमाकर खाने वाले हैं। हर बार जुर्माने के नाम पर हजारों रुपये देना हमारे लिए नामुमकिन है. लेकिन निगम के लोग जबरदस्ती करते हैं.
कानूनी कार्रवाई का सवाल
अब यह मामला नगर निगम प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों के लिए चुनौती बन गया है. ठेलेवालों की शिकायतें न केवल अवैध वसूली की ओर इशारा करती हैं, बल्कि निगम की साख पर भी सवाल खड़ा करती हैं. ठेलेवालों ने मांग की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए.
प्रशासन की चुप्पी
अब तक नगर निगम की ओर से इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. स्थानीय लोग और ठेलेवाले सवाल कर रहे हैं कि क्या प्रशासन इन गंभीर आरोपों को नजरअंदाज करेगा या उचित कदम उठाएगा. यह मामला छोटे व्यवसायियों के लिए न्याय और सुरक्षा की मांग का प्रतीक बन गया है. अब देखना यह है कि प्रशासन इस दिशा में क्या कदम उठाता है.