सेमरिया विधायक अभय मिश्रा का शर्मनाक षड्यंत्र, आक्रोशित लोगों ने किया SP ऑफिस का घेराव 

रीवा: जिले की सियासत इस वक़्त सबसे निचले स्तर पर है और इसकी वजह है सेमरिया कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा. कभी ‘वोट फॉर नॉट’ के आरोपों से घिरने वाले अभय मिश्रा पर अब अपने ही कर्मचारी से मारपीट का घिनौना आरोप लगा है. एक गरीब मज़दूर, अभिषेक तिवारी, को फार्महाउस में बंधक बनाकर दो घंटे तक बेरहमी से पीटने का आरोप झेल रहे विधायक अब अपने ही जाल में उलझते नज़र आ रहे हैं और उनके बयानों का विरोधाभास उनके षड्यंत्र की पोल खोल रहा है.

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झूठ का पुलिंदा: अभय मिश्रा के बदलते बयान और साज़िश का पर्दाफ़ाश

जब यह क्रूर घटना मीडिया में सामने आई और तूल पकड़ने लगी, तो विधायक अभय मिश्रा ने खुद को बचाने के लिए एक बेहद घिनौना षड्यंत्र रचा. उन्होंने मीडिया के सामने सफ़ाई दी कि जब वह विदेश से अपने फार्महाउस लौटे, तो उनके कर्मचारी अशोक त्रिपाठी एक कटी हुई उंगली पॉलीथीन में लेकर खड़े मिले, जिसे अभिषेक तिवारी ने काटा था.

लेकिन हकीकत, उनके इन दावों से कोसों दूर, चीख-चीखकर कुछ और ही कह रही है. अभिषेक तिवारी पर जो FIR दर्ज हुई है, उसमें घटना का स्थान “ढेकहा तिराहा” बताया गया है और वह भी अगले दिन सुबह की. अगर उंगली फार्महाउस में पहले ही कट चुकी थी, तो अगले दिन फिर ढेकहा तिराहा पर दोबारा कैसे कटी. यह एक सीधा सवाल खड़ा करता है क्या यह एक मनगढ़ंत कहानी है?

अभय मिश्रा का बयान कहता है कि मारपीट फार्महाउस में हुई, वहीं उनके कर्मचारी अशोक त्रिपाठी की FIR में घटना ढेकहा की बताई गई है. यह स्पष्ट है: या तो विधायक झूठ बोल रहे हैं या उनका कर्मचारी. यह विरोधाभास साफ दिखाता है कि सच छिपाने की कोई बड़ी साज़िश रची जा रही है.

पुलिस की मिलीभगत और न्याय का गला घोंटना

पीड़ित अभिषेक तिवारी के बयान के अनुसार, उसका मोबाइल छीना गया, उसे दो घंटे तक बंधक बनाकर पीटा गया. ऐसे गंभीर अपराधों पर BNS की धारा 109 (हत्या की कोशिश), 140 (1) (अपहरण), 310 (2) (डकैती, लूट) और 311 (हत्या का प्रयास, गंभीर मारपीट) जैसी कड़ी धाराएं बननी चाहिए थीं. लेकिन क्या हुआ चोरहटा पुलिस ने सिर्फ 115(2), 127, 296, 314 जैसी हल्की धाराएं लगाईं और वो भी तब, जब यह मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा.

यह सीधे तौर पर पुलिस की मंशा पर सवाल उठाता है और सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि पीड़ित के खिलाफ ही FIR दर्ज कर दी गई, वो भी गैर-जमानती धाराओं में और सिर्फ एक घंटे के भीतर. इसकी तुलना में, खुद पीड़ित अभिषेक तिवारी को अपनी FIR दर्ज कराने के लिए 30 घंटे तक इंतजार करना पड़ा. यह दर्शाता है कि पुलिस किस के इशारों पर नाच रही थी.

यह सब देखकर पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठना लाज़मी है. क्या पुलिस प्रशासन विधायक के इशारों पर काम कर रहा है? जब विधायक अभय मिश्रा ने खुद 11 बजे के करीब यह स्वीकार कर लिया कि मारपीट की गई है, तो फिर थाने में तुरंत FIR क्यों नहीं लिखी गई? क्या मुख्यमंत्री को गुमराह करने के लिए जानबूझकर हल्की धाराओं में FIR दर्ज की गई? क्या पैसा और रसूख एक गरीब की चीख़ पर भारी पड़ गया है और क्या यह न्याय की हत्या नहीं है?

पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं. क्या कारण है कि जिस व्यक्ति को बुरी तरह पीटा गया, उसे ही दोषी बना दिया गया और जेल में डाला गया? और जिसने पिटवाया, उसकी FIR पहले हुई, और उस पर लगाई गईं धाराएं भी सामान्य है.

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