उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग द्वारा कांवड़ मार्ग पर स्थित होटलों और रेस्टोरेंट्स में क्यूआर कोड लगाने की प्रक्रिया चल रही है. इस अभियान के तहत, विभाग की एक टीम रामपुर रोड पर दिल्ली-लखनऊ हाईवे के कांवड़ मार्ग पर स्थित नीलकंठ फैमिली रेस्टोरेंट पहुंची. इस दौरान एक चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ, जब रेस्टोरेंट के लाइसेंस की जांच की गई. लाइसेंस में मालिक का नाम शराफत हुसैन दर्ज था, जिसके बाद प्रशासन ने रेस्टोरेंट का नाम बदलने की सख्त हिदायत दी है.
अब नीलकंठ रेस्टोरेंट को होटल महिक ने एक महीने के लिए बंद कर दिया. इतना ही नहीं शराफत हुसैन ने रेस्टोरेंट का नाम फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट की जांच के बाद हटा दिया है. फूड सेफ्टी और प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई से क्षेत्र में हड़कंप मच गया है. सावन के पवित्र माह में कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने होटल और रेस्टोरेंट संचालकों को अपने नाम स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने के निर्देश दिए हैं.
खाद्य सुरक्षा विभाग सक्रिय
इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है. नीलकंठ फैमिली रेस्टोरेंट, जो कांवड़ मार्ग पर वर्षों से संचालित हो रहा है, इसकी जांच के दौरान विभाग की टीम ने पाया कि इसका नाम धार्मिक भावनाओं के अनुरूप नहीं है. लाइसेंस की जांच में यह तथ्य सामने आया कि रेस्टोरेंट का स्वामित्व शराफत हुसैन के पास है.
प्रशासन ही नहीं स्थानीय लोग भी आश्चर्यचकित
इस खुलासे ने न केवल प्रशासन को बल्कि स्थानीय लोगों को भी आश्चर्यचकित कर दिया. खाद्य सुरक्षा विभाग के सहायक आयुक्त राजवंश श्रीवास्तव ने इस मामले पर जानकारी देते हुए बताया कि शासन के निर्देशानुसार कावड़ मार्ग पर सभी होटलों और रेस्टोरेंट्स में क्यूआर कोड लगाने का कार्य किया जा रहा है. इस प्रक्रिया के तहत जब नीलकंठ फैमिली रेस्टोरेंट का लाइसेंस जांचा गया, तो उसमें मालिक का नाम शराफत हुसैन पाया गया.
रेस्टोरेंट मालिक ने नाम बदलने का दिया आश्वासन
उन्होंने कहा, नीलकंठ जैसे धार्मिक नाम से रेस्टोरेंट चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह कांवड़ यात्रियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है. इसलिए, शराफत हुसैन को दो दिनों के भीतर रेस्टोरेंट का नाम बदलने या इसे बंद करने की हिदायत दी गई है. शराफत हुसैन ने इस संबंध में खाद्य सुरक्षा विभाग को आश्वासन दिया है कि वह रेस्टोरेंट का नाम शीघ्र ही बदल देंगे. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि रेस्टोरेंट का नाम पहले से ही इस तरह रखा गया था और इसका कोई गलत इरादा नहीं था.
दो दिनों के भीतर नहीं बदला नाम तो होगी कार्रवाई
वहीं प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यदि दो दिनों के भीतर नाम नहीं बदला गया तो रेस्टोरेंट के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाएगी, जिसमें इसे बंद करना भी शामिल हो सकता है. यह घटना मुरादाबाद में चर्चा का विषय बन गई है. कांवड़ यात्रा सावन माह में लाखों श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है. उत्तर प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है. इस दौरान प्रशासन विशेष रूप से सतर्क रहता है, ताकि श्रद्धालुओं की सुविधा और उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान सुनिश्चित हो सके. नीलकंठ रेस्टोरेंट का मामला भी इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है.
स्थानीय लोगों का क्या कहना है?
स्थानीय लोगों का कहना है कि कांवड़ मार्ग पर इस तरह के रेस्टोरेंट्स का नाम धार्मिक प्रतीकों से जोड़ा जाना संवेदनशील हो सकता है. एक स्थानीय निवासी ने कहा कि नीलकंठ भगवान शिव का नाम है और कावड़ यात्रा में इस नाम का विशेष महत्व है. ऐसे में रेस्टोरेंट का नाम बदलना उचित कदम है. कुछ अन्य लोगों का मानना है कि यह नियम सभी के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए, ताकि किसी भी समुदाय की भावनाएं आहत न हों.
खाद्य सुरक्षा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि क्यूआर कोड लगाने की प्रक्रिया न केवल पारदर्शिता बढ़ाने के लिए है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि सभी रेस्टोरेंट्स खाद्य सुरक्षा मानकों का पालन करें. इस अभियान के तहत मुरादाबाद जिले के सभी प्रमुख होटलों और रेस्टोरेंट्स की जांच की जा रही है. इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या व्यवसायों को अपने नामकरण में धार्मिक प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए, खासकर उन क्षेत्रों में जहां धार्मिक संवेदनशीलता अधिक है.
यूपी में नेम प्लेट विवाद बना सियासी मुद्दा
प्रशासन का यह कदम कांवड़ यात्रा के दौरान शांति और व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक प्रयास है. उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्ग पर होटल और दुकानों के नेम प्लेट को लेकर विवाद गहरा गया है. सरकार के आदेश के अनुसार, कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को अपनी नेम प्लेट पर मालिक का नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य है. बीजेपी का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और कावड़ियों की भावनाओं की रक्षा के लिए है. वहीं, विपक्ष ने इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव करार दिया है.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने सरकार पर समुदाय विशेष को निशाना बनाने का आरोप लगाया. इस मुद्दे ने सोशल मिडिया पर भी जोर पकड़ा, जहां लोग धार्मिक संवेदनाओं और स्वतंत्रता पर बहस कर रहे हैं.