श्योपुर : सरकार व्यवस्थाएं सुधारने के लाख प्रयास करे, लेकिन जब तक प्रशासनिक लापरवाही पर लगाम नहीं लगेगी, आम जनता को परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा. ताजा मामला जिले के जिला अस्पताल का है, जहां घंटों इंतजार के बाद दर्जनों मरीज बिना इलाज के ही लौटने को मजबूर हो गए.
मरीजों को नहीं मिला इलाज, घंटों करते रहे डॉक्टर का इंतजार
जिला अस्पताल में दूर-दराज से आए और आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा. मरीजों और उनके परिजनों ने बताया कि वे सुबह से तीन घंटे तक डॉक्टर का इंतजार करते रहे, लेकिन कोई डॉक्टर ओपीडी में नहीं आया. बताया जा रहा है कि कई डॉक्टर ओपीडी के बजाय अपने आवास पर मरीजों को देखते हैं, जिससे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचते.
मरीजों की बढ़ती नाराजगी के बीच कांग्रेस युवा नेता पहुंचे अस्पताल
डॉक्टरों की लापरवाही को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया है, जिसमें कांग्रेस के युवा जिला अध्यक्ष रामभरत मीणा मरीजों की शिकायत पर जिला अस्पताल पहुंचे. उन्होंने मरीजों और उनके परिजनों से पूछा कि क्या डॉक्टर आए हैं, तो जवाब मिला—”नहीं आए हैं.”
सिविल सर्जन से सवाल पूछना पड़ा महंगा
रामभरत मीणा सिविल सर्जन डॉ आरवी गोयल से मिलने उनके ऑफिस पहुंचे और कैमरे के सामने व्यवस्थाओं को लेकर सवाल पूछे. इससे सिविल सर्जन नाराज़ हो गए और युवा नेता को ऑफिस से बाहर निकलने को कह दिया. मीणा ने आरोप लगाया कि उन्हें पुलिस बुलाने की धमकी भी दी गई.
युवा नेता ने कहा कि शाम 5:30 बजे अस्पताल पहुंचे तो मेटरनिटी चैंबर में एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था, जबकि नियम के अनुसार शाम 5 से 6 बजे तक डॉक्टर को वहां बैठना होता है. बोर्ड पर ड्यूटी डॉक्टर का नाम तक नहीं लिखा था. जब उन्होंने सिविल सर्जन से सवाल किए तो उन्हें धमकी दी गई.
कलेक्टर ने दिया जांच का आश्वासन
इस पूरे मामले पर जब कलेक्टर अर्पित वर्मा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच कर उचित कार्रवाई की जाएगी.
जनता का सवाल: कब सुधरेंगी अस्पताल की व्यवस्थाएं?
यह पहली बार नहीं है जब जिला अस्पताल की लापरवाहियों की शिकायत सामने आई है. सवाल उठता है कि आखिर कब तक डॉक्टरों की मनमानी यूं ही चलती रहेगी? मरीजों की सेवा के लिए सरकार ने डॉक्टरों की नियुक्ति की है, लेकिन अगर वे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचेंगे, तो जनता इलाज के लिए कहां जाएगी?
सिविल सर्जन से संपर्क की कोशिश असफल
जब डॉ आरवी गोयल से इस विषय में बात करने के लिए संपर्क किया गया, तो उनका फोन नहीं लग पाया. सवाल यह है कि क्या जनप्रतिनिधि जनता के सवाल लेकर अधिकारियों के पास नहीं जा सकते? क्या जिम्मेदारों को जनता से जवाबदेही नहीं होनी चाहिए?
यह मामला सिर्फ एक अस्पताल या एक जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर एक गंभीर सवाल है – मरीजों की जान की कीमत क्या सिर्फ एक हस्ताक्षर या कैमरा बंद करने तक ही सीमित रह गई है?