भीलवाड़ा, राजस्थान : राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी जहाजपुर आजकल देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है, और इसका कारण है यहां बना एक अनोखा और भव्य जिनालय – ‘स्वस्तिधाम’. यह जिनालय जहाज की आकृति में निर्मित है और नगर के नाम ‘जहाजपुर’ से प्रेरित होकर इसे आकार दिया गया है. यह केवल स्थापत्य की दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्म और समाजिक एकजुटता का प्रतीक बनकर उभरा है.
प्राचीन प्रतिमा से शुरू हुई अध्यात्मिक यात्रा
स्वस्तिधाम की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत 23 अप्रैल 2013 को महावीर जयंती के दिन हुई, जब भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्राचीन प्रतिमा भूगर्भ से प्रकट हुई. प्रशासन द्वारा अधिग्रहण के बाद, आर्यिका श्री 105 स्वस्ति भूषण माता जी के प्रयासों से यह प्रतिमा 29 अप्रैल को समाज को सौंप दी गई.
जहाज के आकार में बना जिनालय
माता जी के मार्गदर्शन में यह निर्णय लिया गया कि जिनालय की आकृति जहाज की भांति होनी चाहिए. स्वस्तिधाम मंदिर समिति के उपाध्यक्ष धनराज जैन और मीडिया प्रभारी नेमीचंद जैन ने बताया कि जालोर जिले में स्थित एक छोटे जहाजनुमा मंदिर को आदर्श मानते हुए इस भव्य जिनालय का निर्माण कार्य आरंभ किया गया. वर्ष 2016 में इसकी नींव रखी गई और चार वर्षों की मेहनत के बाद 7 फरवरी 2020 को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा स्वर्णिम वेदिका पर विराजमान की गई.
स्वस्तिधाम जिनालय की प्रमुख विशेषताएं:
- गर्भगृह का आकार: 100×60 स्क्वायर फीट
- कुल क्षेत्रफल: 150×80 स्क्वायर फीट
- विशेष डिजाइन: आगे से तिकोनी आकृति और छत पर तीन भव्य शिखर
- छत पर चौबीसी: 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की स्थापना
- जलकुंड और फव्वारे: चारों ओर 8×5 फीट के जलकुंड, जिनमें विशेष लाइटिंग और फव्वारे हैं जो इसे जल पर तैरते जहाज जैसा आभास देते हैं
एकता और श्रद्धा का प्रतीक
स्वस्तिधाम आज केवल जहाजपुर की पहचान ही नहीं, बल्कि पूरे देश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बन चुका है. यह स्थान यह संदेश देता है कि जब समाज एकजुट होकर किसी संकल्प को अपनाता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है.