आज देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है. भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण की अष्टमी तिथि को हुआ था. भगवान कृष्ण का प्राकट्य मध्य रात्रि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसलिए हर साल इस तिथि पर धूमधूम से कन्हैया का जन्मोत्सव मनाय जाता है. जन्माष्टमी के मौके पर भगवान के अलग-अलग स्वरूपों जैसे शालिग्राम, लड्डू गोपाल और राधा-कृष्ण स्वरूप की विधिवत पूजा होती है. इस दिन भक्त निर्जला उपवास रखते हैं. फिर रात्रिकाल के शुभ मुहूर्त में खीरे से कान्हा का जन्म कराते हैं. उन्हें पंचामृत से स्नान कराते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं.
जन्माष्टमी तिथि और शुभ योग
इस वर्ष अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 की रात 11:48 बजे प्रारंभ होकर 16 अगस्त की रात 9:34 बजे समाप्त हो रही है. उदिया तिथि के अनुसार, जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त यानी आज मनाया जा रहा है. इस बार जन्माष्टमी पर कई खास योग भी बन रहे हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग भी बन रहे हैं.
जन्माष्टमी पर क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?
इस बार जन्माष्टमी पर रात्रिकाल में लड्डू गोपाल की पूजा का शुभ मुहूर्त 16 अगस्त को रात 12 बजकर 04 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा. यानी श्रीकृष्ण का जन्म कराने और विधिवत पूजा के लिए भक्तों को कुल 45 मिनट का समय मिलेगा.
श्री कृष्ण की मूर्ति का चुनाव कैसे करें?
सामान्यतः जन्माष्टमी पर बाल कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की जाती है. लेकिन आप अपनी मनोकामना के हिसाब से भी कृष्ण की प्रतिमा का चयन कर सकते हैं. यदि प्रेम और दांपत्य सुख की कामना हो तो राधा-कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें. संतान प्राप्ति के लिए बाल कृष्ण का स्वरूप चुनें. और समग्र मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बंसीधारी कृष्ण की स्थापना करें.
कैसे करें श्रीकृष्ण का श्रृंगार?
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के श्रृंगार में फूलों का विशेष महत्व है. इस दिन पूजा के लिए ताजे और सुगंधित फूलों का भरपूर प्रयोग करें. लड्डू गोपाल को पीले रंग के वस्त्र धारण कराएं. माथे और शरीर पर गोपी चंदन एवं चंदन लगाएं. काले रंग का इस्तेमाल न करें. कृष्ण पर वैजयंती के फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है. श्रृंगार पूरा होने के बाद कान्हा को आईना दिखाकर उनकी सुंदरता का दर्शन कराएं.
श्रीकृष्ण का प्रसाद
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को प्रसाद अर्पित करते समय पंचामृत यानी दूध, दही, घी, शहद और शक्कर अवश्य चढ़ाएं. इस प्रसाद में तुलसी डालना अत्यंत शुभ माना जाता है. इसे भगवान के अभिषेक और प्रसाद दोनों के रूप में प्रयोग किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि पंचामृत शुद्धता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है. और इसे ग्रहण करने से मन और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं. इसके साथ मेवा, माखन और मिश्री का भोग लगाएं. कई स्थानों पर धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है. इस दिन कई तरह के पूर्ण सात्विक भोजन भी श्रीकृष्ण को अर्पित किए जा सकते हैं.
जन्माष्टमी व्रत के नियम?
कृष्ण जन्माष्टमी पर सुबह स्नान करके व्रत या पूजा का संकल्प लें. यह व्रत निर्जला रखा जाता है. व्रती दिन में सिर्फ एक बार जल ग्रहण कर सकता है. हालांकि कुछ परिस्थितियों में जलाहार या फलाहार भी व्रत रखा जा सकता है. इस दिन पूर्णत: सात्विक रहें. मध्यरात्रि में खीरे से बाल गोपाल का जन्म कराएं. फिर कान्हा की धातु निर्मित प्रतिमा को किसी पात्र में रखें. उन्हें दूध, दही, शहद, शक्कर और अंत में घी से पंचामृत स्नान कराएं. फिर जल से स्नान कराएं. श्री कृष्ण को पीताम्बर, पुष्प और प्रसाद अर्पित करें. ध्यान रखें कि अर्पित की जाने वाली चीजें शंख में डालकर ही अर्पित करें. व्रत या पूजा करने वाला व्यक्ति इस दिन काले या सफेद वस्त्र धारण न करें.
इन मंत्रों और स्तुतियों से भगवान कृष्ण की पूजा करें
भगवान कृष्ण का नाम ही एक महामंत्र है. इसका भी जप किया जा सकता है. इसके अलावा आप “हरे कृष्ण” महांत्र का भी जप कर सकते हैं . जीवन में प्रेम और आनंद के लिए “मधुराष्टक” का पाठ करें. श्री कृष्ण को गुरु रूप में प्राप्त करने के लिए श्रीमदभगवदगीता का पाठ करें. अपनी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने के लिए “गोपाल सहस्त्रनाम” का पाठ भी कर सकते हैं.