चंदौली : 1986 के बहुचर्चित सिकरौरा नरसंहार कांड में बाहुबली पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह और अन्य आरोपियों की दोषमुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनः सुनवाई का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मृतक ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव की पत्नी हीरावती देवी की याचिका पर यह निर्णय लिया. कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय से केस के मूल रिकॉर्ड मंगाकर सुनवाई को तेज़ करने की बात कही है.
सिकरौरा नरसंहार की घटना 9 अप्रैल 1986 की है, जब चंदौली के बलुआ थाना क्षेत्र के ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव, उनके चार मासूम बच्चों और दो भाइयों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया था. हत्या के पीछे राजनीतिक और आपराधिक रंजिश को प्रमुख कारण माना गया था.
सत्र न्यायालय ने अगस्त 2018 में मुख्य आरोपी बृजेश सिंह सहित 13 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ हीरावती देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने भी सत्र न्यायालय का फैसला बरकरार रखा. हालांकि, चार आरोपियों – पंचम सिंह, वकील सिंह, राकेश सिंह और देवेंद्र सिंह – को उम्रकैद की सजा दी गई थी.
हीरावती देवी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए आरोपियों की दोषमुक्ति को रद्द करने और सजा की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए मामले में पुनः सुनवाई का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दोषमुक्त किए गए बृजेश सिंह, रामदास उर्फ दीना, नरेंद्र सिंह उर्फ मामा और विजयी सिंह सहित अन्य आरोपियों पर फिर से विचार करने की बात कही। साथ ही, सजा पाए चार दोषियों की जमानत याचिका खारिज कर दी.
बृजेश सिंह का नाम 1985 में दर्ज हुए पहले हत्या के मामले से चर्चा में आया. 1989 में उनकी हिस्ट्रीशीट खोली गई और 1998 में उनका अंतरराज्यीय गैंग पंजीकृत हुआ. वर्ष 2008 में ओडिशा से गिरफ्तारी के बाद भी बृजेश ने अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी. जेल में रहते हुए 2016 में वे एमएलसी चुने गए और 2022 में जमानत पर रिहा हुए. वर्तमान में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी से एमएलसी हैं.
हीरावती देवी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि नरसंहार में उनके पति, देवर और चार मासूम बच्चों की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि इस जघन्य कांड में दोषमुक्त हुए आरोपियों को सजा दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई तेजी से आगे बढ़ेगी. यह फैसला चंदौली और पूर्वांचल की राजनीति और आपराधिक इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. वहीं, मृतकों के परिवार को न्याय की उम्मीद एक बार फिर जगी है.