कोरबा के कुसमुण्डा खदान में डीजल चोरी का ‘मौन नेटवर्क’: शिकायत रास्ते में गुम, चोरी का माल वहीं खपत…सिस्टम की चुप्पी पर उठे सवाल

कोरबा: रात का सन्नाटा…खदान की मशीनें शांत, लेकिन डीजल के टैंकों से निकल रही ‘गंध’ कहानी बयां कर रही है. यह कुसमुण्डा खदान का वो हिस्सा है, जहां डीजल चोरी का खेल सालों से चल रहा है. फर्क सिर्फ इतना है कि चोरी का माल बाहर नहीं जाता, यहीं खदान भीतर, मशीनों और डम्परों में ‘गायब’ हो जाता है.

अंदर के कर्मचारी बताते हैं, डम्पर ऑपरेटरों और कुछ जागरूक स्टाफ ने कई बार चोरी की लिखित शिकायत की. लेकिन फाइल ऊपरी स्तर तक जाने से पहले ही ठंडी कर दी जाती है और जब शिकायत ही ऊपर न पहुंचे, तो कार्रवाई का सवाल ही नहीं. यही वजह है कि चोरी पकड़े जाने पर थोड़े दिन रुकती है, फिर नए जोश के साथ शुरू हो जाती है.

गिरोह का ब्लू प्रिंट

सूत्र बताते हैं कि इस नेटवर्क का संचालन नवीन कश्यप (₹5,000 इनामी) और बलगी निवासी परमेश्वर कर रहे हैं. इनकी टीम चार मुख्य पॉकेट में बंटी हुई है, जिसमें पहला बरमपुर कन्वेयर बेल्ट के भीतर, दूसरा खमरिया पुराने पेट्रोल पंप के पीछे, तीसरा गेवरा रोड रेलवे स्टेशन के पास और चौथा खोडरी की दिशा में जाने वाला इलाका शामिल है. इन जगहों पर रात में बिना नंबर प्लेट की बोलेरो और कैम्पर गाड़ियां पहुंचती हैं, डम्पर रोककर चाबी निकाल लेती हैं और टंकी खाली कर देती हैं.

तारीख, समय, गाड़ी नंबर…सब मौजूद, लेकिन FIR नहीं

हाल के महीनों में दर्ज शिकायतें डम्पर K-928 से RBR बेल्ट के पास पूरी टंकी गायब, डम्पर K-941 से सतर्कता चौक पर रात 3:40 बजे चोरी और डम्पर S-886 से भी डीजल उड़ाया गया. इन सभी में गाड़ी नंबर, लोकेशन और समय तक दर्ज है, लेकिन FIR का नामोनिशान नहीं. अगर कार्रवाई हुई भी है तो वह फाइलों के अंदर कैद है.

अंदर ही चोरी, अंदर ही खपत…बाहर कोई सबूत नहीं

डीजल चोरी का यह नेटवर्क बेहद ‘सेफ’ है, क्योंकि यह बाहर सप्लाई नहीं करता. चोरी का डीजल वहीं खप जाता है, जिससे न पुलिस के पास सुबूत आता है, न मीडिया के पास तस्वीर. यही वजह है कि यह खेल सालों से बिना किसी बड़े विवाद के चलता आ रहा है. कुसमुण्डा खदान में डीजल चोरी की कहानी सिर्फ चोरी की नहीं, बल्कि सिस्टम की चुप्पी की है. सवाल साफ है क्या यह खामोशी मजबूरी है, डर है या फिर मिलीभगत?

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