मीटिंग में ये रेशमी जुल्फें गाना यौन उत्पीड़न नहीं…’, बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के एक मामले में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) और औद्योगिक न्यायालय, पुणे के फैसले को खारिज कर दिया है. यह मामला एक बैंक कर्मचारी से जुड़ा था, जिस पर महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करने और एक बैठक में ‘ये रेशमी जुल्फें’ गाने के आरोप लगे थे.

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जस्टिस संदीप मारणे की बेंच ने पाया कि आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट अस्पष्ट थी और साक्ष्यों की पर्याप्त जांच नहीं की गई थी. कोर्ट अधिवक्ता सना रईस खान के माध्यम से पुरुष बैंक कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 30 सितंबर 2022 की ICC रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे कार्यस्थल पर कदाचार का दोषी पाया गया था.

आंतरिक शिकायत समिति ने तीन घटनाओं को शामिल किया था, जिसमें एक महिला सहकर्मी के बालों के बारे में अनुचित टिप्पणी, एक मिक्स्ड-जेंडर फॉरम में की गई एक विचारोत्तेजक टिप्पणी और एक अन्य महिला कर्मचारी के खिलाफ आरोप शामिल थे.

बालों वाली घटना के बारे में एडवोकेट सना खान ने कहा कि याचिकाकर्ता ने एक बैठक में देखा कि शिकायतकर्ता अपने लंबे बालों से असहज थी और इसलिए उसने मजाक में कहा कि “क्या आपको सुबह अपने बाल बांधने के लिए जेसीबी की जरूरत है? और हल्के-फुल्के अंदाज में गाने की एक लाइन ‘ये रेशमी जुल्फें’ गाई.

बालों वाली टिप्पणी के बारे में बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता के प्रति कथित रूप से की गई टिप्पणी की प्रकृति को देखते हुए यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि यह शिकायतकर्ता को किसी भी तरह का यौन उत्पीड़न करने के इरादे से की गई थी. टिप्पणी किए जाने पर उसने खुद कभी भी टिप्पणी को यौन उत्पीड़न नहीं माना.

दूसरा आरोप था कि याचिकाकर्ता ने एक पुरुष सहकर्मी के निजी अंग पर टिप्पणी की थी, जिसे कुछ महिला सहकर्मियों ने सुना, लेकिन अदालत ने माना कि यह सिर्फ मजाक था और पुरुष सहकर्मी ने इसे अनुचित नहीं माना.

तीसरी घटना का याचिकाकर्ता से कोई संबंध नहीं था, बल्कि यह शिकायतकर्ता के रिपोर्टिंग मैनेजर के खिलाफ थी, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया. औद्योगिक न्यायालय ने जुलाई 2024 में ICC के निष्कर्षों को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया था. हालांकि जस्टिस मारणे ने कहा कि आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट में सभी आरोपों की अलग-अलग जांच नहीं की गई, बल्कि सामान्य निष्कर्ष दिए गए. अदालत ने कहा कि भले ही आरोप सही माने जाएं, वे यौन उत्पीड़न (POSH अधिनियम) के दायरे में नहीं आते.

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