सुपौल: जहां आज भी मासिक धर्म को लेकर समाज में चुप्पी और शर्म की दीवारें खड़ी हैं. वहीं एक शिक्षिका ने इस विषय पर खुलकर बात करने की साहसिक पहल की है.
छातापुर प्रखंड के उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय कटहरा खतबे टोला की शिक्षिका स्मिता ठाकुर ने न केवल छात्राओं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के बीच माहवारी स्वच्छता को लेकर जागरूकता की अलख जगा दी है. मासिक धर्म को लेकर फैली रूढ़ियों और अज्ञानता के कारण महिलाएं आज भी गंभीर बीमारियों का शिकार हो रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दस में से एक महिला सर्वाइकल या गर्भाशय संबंधी बीमारियों से जूझ रही है, जिसका एक बड़ा कारण मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का अभाव है। ऐसे में इस विषय पर खुलकर बातचीत और जागरूकता की अत्यधिक आवश्यकता है.
रेड डॉट चैलेंज से फैली नई चेतना
विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस के अवसर पर शिक्षिका ने छात्राओं के बीच रेड डॉट चैलेंज की शुरुआत की. इस अभियान में सभी छात्राओं ने अपने हाथों पर लाल बिंदु बनाकर यह संकल्प लिया कि वे माहवारी को न शर्म का विषय मानेंगी, न चुप्पी का. वे इसे एक स्वाभाविक और सम्माननीय प्रक्रिया मानते हुए स्वास्थ्य और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें.
कविताओं के माध्यम से संवेदनशील संवाद
सिर्फ औपचारिक भाषणों तक सीमित न रहकर स्मिता ठाकुर ने अपनी स्वरचित कविताओं के ज़रिए बच्चियों और महिलाओं को संवेदनशील रूप से जागरूक किया. उनकी कविताएं न सिर्फ भावनात्मक रूप से जोड़ती हैं, बल्कि समाज की मानसिकता को बदलने के लिए प्रेरित भी करती हैं.
ग्रामीण परिवेश में नई शुरुआत
शिक्षिका का यह प्रयास इसलिए भी सराहनीय है क्योंकि यह पहल एक ऐसे क्षेत्र से हुई है जहां शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की बेहद कमी है. उन्होंने न सिर्फ शिक्षा का कर्तव्य निभाया, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में भी अहम कदम बढ़ाया है.
एक साहसिक पहल, एक बदलाव की शुरुआत
जब समाज माहवारी जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आज भी बात करने से कतराता है, तब स्मिता ठाकुर जैसी शिक्षिका का यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों की बेटियों और महिलाओं के लिए आशा की किरण बनकर उभरा है. यह पहल न केवल भ्रांतियां तोड़ेगी, बल्कि एक स्वस्थ, जागरूक और सम्मानजनक सोच की नींव भी रखेगी.