परिसीमन, भाषा विवाद और एजुकेशन पॉलिसी को लेकर मचे बवाल के बीच तेलंगाना की भारत राष्ट्र समित (BRS) ने DMK को अपना समर्थन दिया है. बीआरएस का कहना है कि दक्षिणी राज्यों को उनके प्रदर्शन और परिवार नियोजन के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए.
न्यू एजुकेशन पॉलिसी और परिसीमन पर बात करते हुए बीआरएस के नेता सुरेश रेड्डी ने कहा कि आज कोई व्यक्ति यूपी में मतदाता हो सकता है और वह तेलंगाना में काम कर रहा हो सकता है, इसलिए जनसंख्या मानदंड नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हम तेलुगु के साथ समझौता नहीं करेंगे क्योंकि यह सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, लेकिन हम अन्य भाषाओं का भी स्वागत करते हैं. बता दें कि बीआरएस के राज्यसभा में 5 सांसद हैं.
दरअसल, नए एजुकेशन पॉलिसी के तहत त्रिभाषा व्यवस्था पर केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच विवाद छिड़ा हुआ है. तमिलनाडु सरकार का कहना है कि राज्य में हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाना स्वीकार नहीं किया जाएगा. दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु में, इस नीति के खिलाफ विरोध होता रहा है, क्योंकि वहां के लोग मानते हैं कि इस निर्णय से उनकी मातृभाषाओं (तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम) को नुकसान होगा.
भाषा के पीछे तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच हो रही ये बहस नई नहीं है. इसका इतिहास 85 साल पुराना है. दरअसल, पहले भी 1937 के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी (अब तमिलनाडु) में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने की कोशिश हुई थी, उस दौरान भी इसको लेकर विरोध हुआ था.
वहीं, हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने लोगों से तुरंत बच्चे पैदा करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि तमिलनाडु के लिए सफल फैमिली प्लानिंग लागू करना नुकसानदायक सौदा हुआ है. स्टालिन ने राज्य के लोगों को चेतावनी दी कि जनसंख्या आधारित परिसीमन तमिलनाडु के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित कर सकता है.
स्टालिन ने राज्य के निवासियों से उनकी अपील पर ध्यान देने का आह्वान किया. गौरतलब है कि केंद्र सरकार 2026 में लोकसभा सीटों का परिसीमन करवा सकती है.