हिंदी बोलना मातृभाषा का अपमान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का सम्मान… संवाद प्रोग्राम पर बोले किशन रेड्डी

केंद्रीय कोयला एवं खनन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने शुक्रवार को कहा कि हिंदी बोलना किसी की मातृभाषा का अपमान नहीं है. उन्होंने हिंदी विरोधी आंदोलनों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा करार दिया है. केंद्र सरकार के राजभाषा विभाग के स्वर्ण जयंती समारोह दक्षिण संवाद में बोलते हुए रेड्डी ने कहा कि ‘भारत का सबसे बड़ा लोकतंत्र भाषाओं से नहीं, बल्कि साझा आदर्शों और राष्ट्रीय एकता से मजबूत है.’

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रेड्डी ने कहा कि हिंदी को राजभाषा के रूप में सम्मान देना चाहिए और इसे मातृभाषाओं के साथ जोड़कर देखना चाहिए. उन्होंने अपनी मातृभाषा तेलुगु का उदाहरण देते हुए बताया कि हिंदी बोलने से वह देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों से बेहतर संवाद कर पाते हैं और यह उनकी मातृभाषा के खिलाफ नहीं है. बल्कि इसी बहाने उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान भी हो गया है.

हिंदी विरोधी आंदोलन भाषा से नहीं, बल्कि राजनीति के कारण हो रहे: रेड्डी

उन्होंने कहा कि ‘हिंदी विरोधी आंदोलन भाषा से जुड़े नहीं हैं, बल्कि ये राजनीति के कारण हो रहे हैं. कुछ लोग चुनाव से पहले हिंदी और हिंदू विरोधी बयान देकर लोगों को भड़काने की कोशिश करते हैं. जिससे उनका वोट बैंक मजबूत हो सके. यह पूरी तरह से गलत है.’ रेड्डी ने जोर देकर कहा कि अलग-अलग मातृभाषाओं के बावजूद हम एक राष्ट्र के रूप में एकजुट हैं. जिसका कारण हमारी अनेकता में एकता है. उन्होंने महात्मा गांधी, बी.आर. आंबेडकर और सी.वी. रमन जैसे महान व्यक्तियों का जिक्र करते हुए मातृभाषा के महत्व को बताया कि वो एक सुसंस्कृत समाज के लिए कितनी आवश्यक है.

राजभाषा विभाग की सराहना

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने इस मौके पर राजभाषा विभाग की तारीफ की. उन्होंने कहा कि राजभाषा प्रतियोगिताएं आयोजित कर विभाग हिंदी को बढ़ावा देने के साथ-साथ भाषाई एकता को मजबूत कर रहा है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव जैसे गैर-हिंदी भाषी नेताओं के हिंदी में योगदान को भी याद किया.

हिंदी हमारी पहचान का आधार है: रेड्डी

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने कहा कि हिंदी सीखने से किसी की पहचान कमजोर नहीं होती है. बल्कि यह उसे और मजबूती देती है. उन्होंने हिंदी को एक ऐसी भाषा बताया जो देश के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने का काम करती है. रेड्डी ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी और मातृभाषाएं एक-दूसरे की पूरक हैं. ये भाषाएं भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं. साथ ही राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देती हैं.

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