बिहार फतह को लेकर प्रशांत किशोर के प्लान से सबसे ज्यादा टेंशन राष्ट्रीय जनता दल की बढ़ती हुई दिख रही है. बुधवार को बड़ा दांव खेलते हुए प्रशांत ने बिहार में हिस्सेदारी फॉर्मूले के तहत मुसलमानों को 75 टिकट देने की घोषणा की. पीके ने यह घोषणा ऐसे वक्त में की है, जब आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का सियासी गलियारों में एक लेटर वायरल हो रहा है.
जगदानंद ने यह पत्र अपने पार्टी नेताओं को लिखा था, जिसमें उन्होंने पार्टी नेताओं को पीके से दूर रहने के लिए कहा था. जगदानंद सिंह के वायरल लेटर और मुसलमानों के लेकर पीके के ऐलान के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या बिहार में सच में तेजस्वी के लिए प्रशांत किशोर सियासी सरदर्द बनते जा रहे हैं?
बिहार फतह को लेकर प्रशांत किशोर का प्लान क्या है?
2 साल से बिहार की खाक छान रहे प्रशांत किशोर 2025 के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. पीके 2 अक्टूबर को अपनी पार्टी लॉन्च करेंगे और फिर उसके सिंबल पर सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे. बिहार फतह के लिए पीके ने 3 प्लान तैयार किया है.
1. प्रशांत किशोर सबसे ज्यादा महिला और युवा मतदाताओं पर फोकस कर रहे हैं. अपने हर कार्यक्रम में पीके इन दोनों के मुद्दों को उठाते हैं. निर्वाचन आयोग के मुताबिक बिहार में 40 साल से कम उम्र के करीब 4 करोड़ 29 लाख वोटर्स हैं. इनमें 18 से 19 वर्ष वाले 71 लाख वोटर्स, 20 से 29 वर्ष वाले करोड़ 60 लाख वोटर्स और 30 से 39 वर्ष वाले 1 करोड़ 98 लाख वोटर्स हैं.
2. पीके जाति और समुदाय के आधार पर भी जीत का प्लान तैयार कर रहे हैं. उनके निशाने पर दलित और मुस्लिम समुदाय के युवा हैं, जिन्हें प्रशांत हिस्सेदारी के नाम पर साधना चाहते हैं. बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 17 प्रतिशत और दलितों की 20 प्रतिशत है. पीके इन दोनों समुदाय के बीच लगातार जा रहे हैं. हाल ही में दिल्ली के जामिया नगर में उन्होंने मुसलमानों को लेकर एक कार्यक्रम भी किया था.
3. पीके उन मतदाताओं पर विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं, जो एनडीए से नाराज तो है, लेकिन आरजेडी को वोट नहीं देना चाहती है. इन मतदाताओं को साधकर प्रशांत बिहार में खुद को तीसरी धुरी बनाने की कवायद में जुटे हैं.
पीके के प्लान से आरजेडी की टेंशन क्यों बढ़ी?
राष्ट्रीय जनता दल बिहार में अभी मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में है. पिछली बार काफी क्लोज फाइट में आरजेडी सरकार बनाने से चूक गई थी. पार्टी को 2025 में सरकार बनाने की उम्मीद है और इसी के तहत तेजस्वी यादव नए समीकरण तैयार कर रहे हैं, लेकिन पीके के प्लान ने पार्टी की टेंशन बढ़ा दी है.
इसी टेंशन के मद्देनजर प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने पार्टी नेताओं को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने पीके की जनसुराज को बीजेपी की बी-टीम बताया था और कार्यकर्ताओं से पीके के अभियान में शामिल नहीं होने की अपील की थी. जगदानंद के लेटर वायरल होने के एक दिन बाद पीके ने मुसलमानों को 75 टिकट देने का ऐलान कर दिया.
पीके का यह ऐलान तेजस्वी की राह में रोड़ा की तरह है. सीएसडीएस के मुताबिक हालिया लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के पक्ष में 87 प्रतिशत मुसलमानों ने मतदान किया है. वहीं महागठबंधन को यादवों के सिर्फ 73 प्रतिशत ही मत मिले. बिहार में यादव और मुस्लिम आरजेडी का कोर वोटर्स माना जाता है. पीके के ऐलान से तेजस्वी की 2 स्तर पर मुश्किलें बढ़ सकती है.
1. टिकट बंटवारे में मुसलमानों को इग्नोर नहीं कर पाएगी. हालिया लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने सिर्फ 2 मुसलमानों को टिकट दिया था, जबकि पार्टी की तरफ से 8 यादवों को उम्मीदवार बनाया गया था. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं.
2. 2020 के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतार के महागठबंधन के साथ खेल कर दिया था. इस बार पीके के उम्मीदवार अगर मजबूत साबित हुए, तो बिहार के मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. यह तेजस्वी यादव के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित होगा.