तीन जून को पचमढ़ी में होने वाली मोहन यादव कैबिनेट की बैठक में पचमढ़ी के जागीरदार रहे राजा भभूत सिंह की स्मृति में सरकार उनकी प्रतिमा लगाने का फैसला कर सकती है। इसके साथ ही राजा भभूत सिंह की वीरगाथा को स्मरण करते हुए नर्मदांचल में उनकी स्मृति में किसी संस्थान का नाम भी उनके नाम पर रखने का फैसला हो सकता है। पचमढ़ी का एक गार्डन भी उनके नाम पर किए जाने की तैयारी है।
बीजेपी सरकार ने नौ साल पहले मटकुली में राजा भभूत सिंह की प्रतिमा लगाने की तैयारी की थी लेकिन बाद में इस पर अमल नहीं हो पाया और अब मोहन सरकार इसे कार्यरूप में बदल सकती है।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इसके पहले 25 दिसम्बर को पचमढ़ी में राजा भभूत सिंह की स्मृति में कैबिनेट बैठक करने का फैसला किया था लेकिन बाद में प्रधानमंत्री के मध्यप्रदेश दौरे के चलते इसे टाल दिया गया था। अब 20 मई को इंदौर में लोकमाता अहिल्या देवी की स्मृति में हुई कैबिनेट बैठक के दौरान मुख्यमंत्री डॉ यादव ने एक बार फिर पचमढ़ी में राजा भभूत सिंह की स्मृति में कैबिनेट बैठक करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद स्थानीय प्रशासन ने कैबिनेट बैठक की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही राजा भभूत सिंह के इतिहास के बारे में भी जानकारी जुटाने का काम किया जा रहा है।
पाइन फॉरेस्ट या ग्रैंड व्यू होटल परिसर मे बैठक संभावित
नर्मदापुरम प्रशासन द्वारा बैठक की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। पाइन फॉरेस्ट या फिर ग्रैंड व्यू होटल में से किसी एक जगह पर कैबिनेट बैठक की तैयारियां प्रस्तावित हैं। बताया जाता है कि अगर मौसम साफ रहा तो पाइन फॉरेस्ट में कैबिनेट हो सकती है जहां पिछली बार भी कैबिनेट हो चुकी है। इसके अलावा अगर मौसम गड़बड़ रहने की स्थिति रही तो ग्रैंड व्यू होटल परिसर के लॉन में बैठक की तैयारियां की जाएंगी। इसके लिए डोम बनाने का काम किया जाएगा। इसके अलावा यहां बनाए गए राजभवन कैम्पस को भी विकल्प के रूप में शामिल किया गया है।
जागीरदार परिवार में जन्मे थे राजा भभूत सिंह
इतिहासकारों के अनुसार पचमढ़ी जागीर के स्वामी ठाकुर अजीत सिंह के वंश में हर्राकोट राईखेड़ी शाखा के जागीरदार परिवार में राजा भभूत सिंह ने जन्म लिया था। पचमढ़ी में महादेव की चौरागढ़ पहाड़ियों में राजा भभूत सिंह के दादा ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में अंग्रेजों के विरुद्ध नागपुर के पराक्रमी पेशवा अप्पा साहेब भोंसले का कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया था। सीताबर्डी के युध्द में पेशवा अप्पा साहिब को अंग्रेजों ने अपमानजनक संधि के लिए विवश कर दिया था। वे भेष बदलकर नर्मदांचल में शक्ति संचय के लिए निकले थे। कई दिनों तक महादेव की पहाड़ियों मे रहकर गुप्त रूप से अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समुदाय को संगठित किया।
नर्मदांचल में बनाई थी आजादी के आंदोलन की योजना
राजा भभूत सिंह के इतिहास की खोज करने वालों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अक्टूबर 1858 के अंतिम सप्ताह में तात्याटोपे ने ऋषि शांडिल्य की पौराणिक तपोभूमि सांडिया के पास नर्मदा नदी पार की। भभूत सिंह और तात्या टोपे ने नर्मदांचल में आजादी के आंदोलन की योजना बनाई। पचमढ़ी में सतपुड़ा की गोद में तात्या टोपे अपनी फौज के साथ भभूत सिंह से मिलकर आठ दिनों तक पड़ाव डाले आगे की तैयारी करते रहे। हर्राकोट के जागीरदार भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था।
एक बार सोहागपुर से थानेदार हर्राकोट आया और उसने जागीरदार से मुर्गियों की मांग की। भभूत सिंह ने इसे अपमानजनक माना और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसके बाद इस क्षेत्र में भभूत सिंह ने अंग्रेजों को चैन से बैठने नहीं दिया। जब देनवा घाटी में अंग्रेजी मिलिटरी सेना और मद्रास इन्फेंटरी की टुकड़ी के साथ भभूत सिंह का युद्ध हुआ तो अंग्रेजी सेना बुरी तरह पराजित हो गई।
छापामार कार्यशैली के कारण नर्मदांचल के शिवाजी कहे जाते थे भभूत सिंह
अपनी छापामार युद्ध नीति के कारण ही भभूत सिंह नर्मदांचल के शिवाजी कहलाते हैं। भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ही मद्रास इन्फेंटरी को बुलाना पड़ा था। भभूत सिंह अपनी सेना के साथ 1860 तक लगातार अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करते रहे। अंग्रेज पराजित होते रहे। दो साल के अथक प्रयासों के बाद अंग्रेजों ने भभूत सिंह को गिरफ्तार कर कैद कर लिया और 1860 में जबलपुर में मौत की सजा सुना कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। कुछ जगह संदर्भ मिलता है कि भभूत सिंह को फांसी दे दी गई और कुछ संदर्भों से ज्ञात होता है कि उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया।
ये भी कहा जाता है कि सतपुड़ा के घने जंगलो में मधुमक्खियों के छत्ते बहुत होते थे वे अंग्रेजो के साथ युद्ध में इन मधुमक्खियों का भी उपयोग करते थे। पिपरिया से पचमढ़ी रोड पर स्थित ग्राम सिमारा में उनकी ड्योढ़ी मानी जाती थी। आज का बोरी क्षेत्र भभूत सिंह की जागीर में ही आता था।