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हिमालय के ऊपर दिखी विचित्र रोशनी… बादलों से अंतरिक्ष की ओर गई रंगीन बिजली

ये कोई आम बिजली (Lightening Strike) नहीं है. ये बिजली लाल रंग की होती है. नीले रंग की होती है. कई बार बैंगनी और गुलाबी रंग की होती है. नारंगी भी दिखती है. ये दुर्लभ बिजली है. ये बादलों से नीचे नहीं गिरती. ये ऊपर जाती है. बादलों से करीब 80 किलोमीटर ऊपर आयनोस्फेयर (Ionosphere) तक.

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ऐसे लगता है कि बादलों से कोई पेंट ब्रश लेकर अंतरिक्ष में कोई पेंटिंग बनाने की कोशिश कर रहा है. या उसकी सफाई के लिए झाड़ू लगा रहा हो. खैर… इस आसामान्य घटना को नासा वैज्ञानिकों ने कैप्चर किया है. ये बिजली वायुमंडल के ऊपर कड़कती है. आपको पता है अंतरिक्ष में जाने वाली ये दुर्लभ बिजली सामान्य बिजली से 50 गुना ज्यादा ताकतवर होती है.

ऐसे लगता है कि बादलों से कोई पेंट ब्रश लेकर अंतरिक्ष में कोई पेंटिंग बनाने की कोशिश कर रहा है. या उसकी सफाई के लिए झाड़ू लगा रहा हो. खैर… इस आसामान्य घटना को नासा वैज्ञानिकों ने कैप्चर किया है. ये बिजली वायुमंडल के ऊपर कड़कती है. आपको पता है अंतरिक्ष में जाने वाली ये दुर्लभ बिजली सामान्य बिजली से 50 गुना ज्यादा ताकतवर होती है.

पूरी दुनिया में सालभर में ये दुर्लभ बिजलियां करीब 1000 बार ही दिखती हैं. यहां पर जो तस्वीर है, उसमें चार बिजलियां दिख रही हैं. इन बिजलियों के बारे में वैज्ञानिकों को ज्यादा नहीं पता है. इनकी खोज ही 20 साल पहले हुई है. इन्हें स्प्राइट (Sprite) कहते हैं. इनका निर्माण बेहद संवेदनशील और तीव्र थंडरस्टॉर्म से होता है.

जहां सामान्य आकाशीय बिजली बादलों से धरती की तरफ गिरती है. स्प्राइट अंतरिक्ष की ओर भागते हैं. ये वायुमंडल के ऊपरी हिस्से तक जाते हैं. इनकी ताकत और तीव्रता बहुत ज्यादा होती है. लाल रंग की कड़कती बिजली यानी स्प्राइट कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए ही दिखते हैं. इसलिए इन्हें देखना और इनकी स्टडी करना बेहद मुश्किल होता है. लेकिन अब तक वैज्ञानिकों ने जितना सीखा और समझा है, वो हम आपको बताते हैं.

इन बिजलियों के व्यवहार की वजह से इनका नाम स्प्राइट रखा गया है. यह स्ट्रैटोस्फेयर से निकलने वाले ऊर्जा कण हैं जो तीव्र थंडरस्टॉर्म से पैदा होने वाले विद्युत प्रवाह से बनते हैं. यहां पर अधिक प्रवाह जब बादलों के ऊपर आयनोस्फेयर में जाता है, तब ऐसी रोशनी देखने को मिलती है. यानी जमीन से करीब 80 किलोमीटर ऊपर.

आमतौर पर ये जेलीफिश या गाजर के आकार में दिखाई देती हैं. इनकी औसत लंबाई-चौड़ाई 48 km तक रहती है. कम या ज्यादा वो तीव्रता पर निर्भर करता है. धरती से इन्हें देखना आसान नहीं होता. ये आपको ऊंचाई पर उड़ रहे प्लेन, स्पेस स्टेशन से स्पष्ट दिख सकते हैं.

स्प्राइट्स सिर्फ थंडरस्टॉर्म से ही नहीं पैदा होते. ये ट्रांजिएंट ल्यूमिनस इवेंट्स (TLEs) की वजह से भी बनते हैं. जिन्हें ब्लू जेट्स कहते हैं. ये अंतरिक्ष से नीचे की तरफ आती नीले रंग की रोशनी होती है, जिसके ऊपर तश्तरी जैसी आकृति बनती है.

जरूरी नहीं है कि धरती के वायुमंडल की वजह से सिर्फ लाल रंग की कड़कती बिजली दिखाई दे. ये वायुमंडल रखने वाले सभी ग्रहों और तारों में भी देखने को मिल सकती है. बृहस्पति ग्रह के वायुमंडल में ऐसे ही स्प्राइट्स की तस्वीर नासा के वॉयेजर-1 स्पेसक्राफ्ट ने साल 1979 में ली थी. ये ब्लू जेट्स थे.

सबसे पहले 1950 में स्प्राइट्स को कुछ नागरिक विमानों ने देखा था. इसके बाद इन्हें लेकर कई थ्योरीज दी गईं. पहली फोटो साल 1989 में आई थी. यह फोटो एक एक्सीडेंटल फोटो थी. मिनिसोटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एक कम रोशनी वाले कैमरा की जांच कर रहे थे, तब उन्होंने बादलों के ऊपर इसकी रोशनी की तस्वीर गलती से ले ली थी. इसके बाद स्पेस स्टेशन से कई एस्ट्रोनॉट्स ने इन रोशनियों के वीडियो बनाए.

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