अरपा नदी में बढ़ते प्रदूषण और अवैध उत्खनन को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने कड़ा रुख अपनाया है. मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए. कोर्ट ने कहा कि अरपा नदी में घास (जलीय खरपतवार) उगने के कारण जल की उपलब्धता प्रभावित हो रही है, और अवैध उत्खनन के चलते नदी की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचा है.
अवैध उत्खनन पर कोर्ट की नाराजगी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अवैध उत्खनन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए कड़े कानून बनाने की जरूरत है. न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि नियम तो बनाए जाते हैं, लेकिन ताकतवर लोग उन्हें तोड़ देते हैं और प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है. कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए सुझाव दिया कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.
सरकारी पक्ष का तर्क
राज्य सरकार और नगर निगम की ओर से अधिवक्ता आरएस मरहास ने पक्ष रखा. उन्होंने बताया कि बिलासपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड वर्तमान में केवल 60% सीवरेज जल का उपचार कर पा रहा है, जबकि शेष 40% के लिए नई परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है. इस रिपोर्ट की तकनीकी जांच के लिए 15 दिन का समय मांगा गया है, जिसके बाद इसे प्रशासनिक स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा.
कोर्ट का सख्त रुख और आदेश
हाईकोर्ट ने बिलासपुर नगर निगम आयुक्त से इस संबंध में शपथपत्र दायर करने को कहा है. साथ ही, जिला मजिस्ट्रेट, रायपुर को मीडिया रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया. कलेक्टर की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि 2022 से 2025 तक अवैध उत्खनन और परिवहन के मामले लगातार बढ़े हैं. इस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई और कहा कि केवल जुर्माना लगाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि राज्य सरकार को सख्त कानून लाकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
अगली सुनवाई 24 मार्च 2025 को
न्यायालय ने खनिज विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि यदि भविष्य में इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं, तो दोषी अधिकारियों और संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च 2025 को होगी.