इंदौर। अब आपराधिक मामलों में पुलिस और डाक्टरों के लिए चोट का फोटो लेना अनिवार्य हो गया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इस संबंध में आदेश जारी किया है। न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकलपीठ ने गंभीर चोट के मामलों में पुलिस द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया को लेकर नाराजगी जताते हुए कहा कि अब घायल व्यक्ति की चोट का पुलिस को तो फोटो लेना ही होगा। इसके साथ ही इलाज करने वाले डॉक्टरों को भी चोट का फोटो लेना होगा, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि चोट गंभीर है या नहीं।
क्य है पूरा मामला?
झाबुआ जिले के कल्याणपुरा थाना क्षेत्र स्थित ग्राम ढेबरबड़ी में 9 मई 2025 को कुछ लोगों का विवाद हुआ था। इसमें झापड़ी भाबोर ने पुलिस को शिकायत की थी कि पड़ोस में रहने वाले सीतू भाबोर और उसके पति के बीच दोपहर में विवाद हो गया था। शाम को जब वह अपने घर के बाहर पति और पोती के साथ सो रही थी, उसी समय सीतु, उसके भाई मम्मु और उनके परिवार की महिलाओं ने तलवार, लकड़ी, पत्थर से उन पर हमला कर दिया। इसमें उनके पति और उसे चोट आई।
मेडिकल रिपोर्ट सामने आने पर धाराएं बढ़ाई
पुलिस ने इस मामले में पहले मामूली धाराओं में केस दर्ज किया था, जिसके चलते आरोपितों की गिरफ्तारी नहीं की गई, लेकिन बाद में मेडिकल रिपोर्ट सामने आने पर पुलिस ने मामले में धाराएं बढ़ाई। चारों आरोपितों ने अग्रिम जमानत के लिए पहले झाबुआ कोर्ट में आवेदन किया था, लेकिन वहां आवेदन निरस्त होने पर वे हाई कोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने मामले की गंभीरता देखते हुए पुलिस से पूछा था कि प्रकरण दर्ज करते वक्त घायलों को आई चोट के फोटो लिए थे या नहीं। नहीं लिए हैं तो स्पष्टीकरण दें कि क्यों नहीं लिए गए।
पुलिस ने क्या दिया जवाब?
पुलिस ने जवाब दिया कि चूंकि घायलों की स्थिति ठीक नहीं थी, ऐसे में उन्हें उपचार के लिए तुरंत अस्पताल भेजा गया था। इस वजह से घायलों के फोटो नहीं लिए जा सके। पुलिस के इस झूठ को पकड़ते हुए कोर्ट ने आदेश में लिखा कि घायल व्यक्तियों को गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन पुलिस ने मामूली धाराओं में प्रकरण दर्ज किया। कोर्ट ने मौजूदा प्रक्रिया पर असंतोष जताया मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मौजूदा प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त करते हुए अपने आदेश में स्पष्ट लिखा है कि यह सिर्फ इस केस की स्थिति नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में पुलिस इसी पैटर्न का इस्तेमाल कर रही है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। गंभीर चोट के बावजूद पुलिस गाली-गलौच, धमकाने, हमला करने जैसी छोटी धाराओं में केस दर्ज करती है। सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस जारी करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना बताते हुए आरोपितों को जमानत दे दी जाती है। जानबूझकर ऐसा सिर्फ इसलिए किया जाता है ताकि प्रकरणों के शुरुआती चरण में आरोपितों को जमानत मिल सके।