मोबाइल फोन की खातिर छात्र ने दी जान, चला गया परिवार का सहारा, पूरे गांव में मातम

आज के युग में मोबाइल फोन की लत और चाहत ने लोगों को जकड़ लिया है. कोई भी इंसान बिना मोबाइल के नहीं रहना चाहता है. मोबाइल फोन की दीवानगी और उसकी लत की शिकार आज की युवा पीढ़ी भी होती जा रही है. छोटे बच्चों और टीनएजर पर मोबाइल फोन का नशा सिर चढ़कर बोलता है. यही वजह है कि आए दिन खबरों में मोबाइल फोन की वजह से कई तरह की क्राइम और घातक कदम जैसी खबरें सामने आती है. धमतरी से इसी तरह की एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है.

मोबाइल फोन के लिए छात्र ने दी जान:

रविवार को धमतरी के सिहावा थाना क्षेत्र के सांकरा गांव में एक 11वीं क्लास के छात्र ने नया मोबाइल नहीं मिलने पर जान दे दी. छात्र के परिजनों ने बताया कि वह कई दिनों से नए मोबाइल की जिद कर रहा था. परिवार वालों ने कहा कि धान बेचकर जो पैसा मिलेगा. उससे मोबाइल खरीद उसे दे देंगे. इसके बावजूद भी छात्र नहीं माना. जिसके बाद उसने घातक कदम उठा लिया.

मेरा बेटा 11वीं क्लास का छात्र था. वह लगातार नए मोबाइल की जिद कर रहा था. हमने कहा कि धान की कटाई और उसकी बिक्री से जो पैसा मिलेगा. उससे मोबाइल फोन खरीद देंगे. वह नहीं माना और कल शाम को उसने यह जानलेवा कदम उठा लिया- दिनेश साहू , मृतक छात्र के पिता

पुलिस ने घटना की जांच शुरू की:

धमतरी पुलिस ने इस घटना की जांच शुरू कर दी है. धमतरी के एएसपी शैलेंद्र पांडेय ने बताया कि हमें सांकरा गांव में एक छात्र के मौत की खबर मिली. उसके बाद हम वहां पहुंचे. हमने छात्र का शव कब्जे में ले लिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया है. आगे की जांच की जा रही है.

परिजनों के मुताबिक छात्र नए मोबाइल की जिद कर रहा था. परिजन इसे खरीद पाने मे असमर्थ थे. उसके बाद छात्र ने यह घातक कदम उठा लिया- शैलेंद्र पांडेय, एएसपी, धमतरी

बच्चों से करते रहें संवाद:

इस तरह की बढ़ती घटनाओं को लेकर धमतरी की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रीति चांडक से बात की. उन्होंने बताया कि आजकल सुनने को आते हैं कि माता-पिता ने मोबाइल नहीं दिया तो बच्चे ने आत्मघाती कदम उठा लिया. इसकी मुख्य वजह यह है कि माता-पिता और बच्चों का जो कम्युनिकेशन है. उसमें गैप हो गया है. पैरेंट्स अपने बच्चो को समय नहीं देते. माता अगर हाउसवाइफ है, पिता वर्किंग है अगर दोनों वर्किंग हैं तो एक दूसरे ऊपर ब्लेम थोप देते हैं. ऐसे में बच्चों को लगता है कि जो रीयल लाइफ में जिंदगी है उसमें उसकी कोई नहीं सुनता है, उनकी बातों को नहीं समझ पाता

बच्चा अपने इमोशन को नहीं बता पाता. स्क्रीन के पीछे वह बच्चे होते हैं जिनको मां-बाप का प्यार नहीं मिल पाता. बेस्ट मेडिएटर जो हैं वह सोशल मीडिया है. बच्चे उससे फ्रेंडशिप करने लगते हैं और उन्हें यह सब अच्छा लगने लगता है. इससे बच्चों को पेरेंट्स का घर, खुद का घर जेल सामान लगने लगता है. उसके बाद माता-पिता का रोक-टोक करना, डांटना उन्हें अच्छा नहीं लगता है.-डॉक्टर प्रीति चांडक, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, धमतरी

डॉक्टर प्रीति चांडक ने आगे बताया कि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए अभिभावकों को अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहिए. माता-पिता की भूमिका जो होती है वह महत्वपूर्ण होती है. अपना टाइम बच्चों को दें. इससे बच्चों का स्क्रीनिंग टाइम कम होगा. बच्चों के बहुत सारे बातों का पता लगेगा. नशे के आदी हैं तो वह भी पता लगेगा. बच्चों में जो मोबाइल का नशा है. वह भी कम होगा. अगर पेरेंट्स को लगता है कि मेंटल हेल्थ प्रोफेसर से मदद लेनी चाहिए, काउंसलिंग करवाना चाहिए तो डेफिनेटली उन्हें डॉक्टर्स से मिलना चाहिए.

धमतरी की इस घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. पुलिस का कहना है कि जांच के बाद ही इस केस में कुछ और कहा जा सकेगा. अभी इस केस की जांच चल रही है.

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