छापेमारी में बरामद अवैध पैसों और संपत्ति का ऐसे होता है इस्तेमाल

बिहार के पटना में हाल ही में आर्थिक अपराध इकाई (EOU) की टीम ने ग्रामीण कार्य विभाग के अफसर विनोद कुमार राय के घर छापा मारा. इस दौरान अफसर ने डर के मारे लाखों रुपये के नोट जला दिए, लेकिन पानी की टंकी और अन्य जगहों से 500-500 रुपये के नोटों के बंडल बरामद हुए. गिनती में करीब 39 लाख 50 हजार रुपये मिले और जले हुए नोटों से अंदाजा लगाया गया कि लगभग 12 लाख रुपये और थे. कुल मिलाकर 52 लाख रुपये की बरामदगी हुई. अब सवाल है कि इतनी बड़ी रकम और संपत्ति जब्त होने के बाद उसका क्या होता है?

देश में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो), आयकर विभाग और पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई जैसी एजेंसियां छापेमारी करती हैं. चुनाव के समय चुनाव आयोग भी संदिग्ध रकम की जांच करता है. जब नकदी बरामद होती है, तो उसे सरकारी अधिकारियों और गवाहों की मौजूदगी में गिना और रिकॉर्ड किया जाता है. इसके बाद एक जब्ती मेमो तैयार होता है और रकम भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की तय शाखा में जमा कर दी जाती है. एजेंसियां इस पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं. अगर आरोपी पैसों का वैध स्रोत और टैक्स साबित कर देता है, तो अदालत पैसे वापस करने का आदेश देती है. वरना रकम सरकार के खाते में चली जाती है.

नकदी के अलावा अगर गहने, गाड़ियां, जमीन या मकान बिना वैध कागजात के मिलते हैं, तो उन्हें भी जब्त कर लिया जाता है. मुकदमे के दौरान ये संपत्ति सरकार के कब्जे में रहती है. अगर आरोपी दोषी साबित होता है, तो कोर्ट के आदेश पर इन्हें नीलाम कर दिया जाता है. नीलामी से हुई कमाई का हिस्सा प्रभावित लोगों को दिया जा सकता है और बाकी सरकार के खजाने में चला जाता है.

2002 में बने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत हर बरामद रकम और संपत्ति का पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है. नोट किस जगह से मिले, किस सीरियल नंबर के हैं, कितनी गिनती है—सब दस्तावेज़ में दर्ज होता है. इसके बाद रकम बैंक में जमा कर दी जाती है और अदालत के फैसले तक एजेंसियां उसे न तो खर्च कर सकती हैं और न किसी को दे सकती हैं.

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