सुल्तानपुर: मोहम्मद शफीक की सऊदी अरब के रियाद में मौत हो गई. मां और परिवार वाले आखरी दीदार के लिए 17 दिन से तरस रहे थे. इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल हक फरिश्ता बनकर आगे आए. उनके अथक प्रयास से शव पैतृक गांव दोस्तपुर के देवरपुर लाया गया, जहां शफीक को सुपुर्द खाक किया गया है.
देवपुर से तीन साल पहले गांव निवासी मोहम्मद मुंशी के परिवार के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे. परिवार को मजबूत करने की कल्पना करते हुए उन्होंने 26 वर्षीय पुत्र मोहम्मद शफीक को रोजी रोटी के लिए सऊदी अरब के रियाद शहर में कमाने के लिए भेज दिया था, रियाद में उसे एक हाउस ड्राइवरी के काम करने वीजा मिला था. शफीक के विदेश में कमाई से घर की हालत पटरी पर आ रही थी, इस बीच कुदरत को मंजूर शायद कुछ और ही था.
15 अक्टूबर को हुई थी मौत
वो हर रोज परिवार वालों से बात करता, लेकिन 15 अक्टूबर 2024 को एकाएक परिजनों का शफीक से अचानक संपर्क टूट गया. परेशान परिजनों ने वहां रह रहे अपने बड़े बेटे के सहयोग से जानकारी किया तो जो खबर मिली वो रुला देने वाली थी. शफीक की करंट से मौत खबर पाकर परिवार पूरी तरह टूट गया.
नियम कानून से अनजान पिता मोहम्मद मुंशी पुत्र का मुंह देखने के लिए तड़प रहे थे. शव भारत लाने की प्रक्रिया से अनजान मोहम्मद मुंशी को सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल हक के बारे में जानकारी हुई.
अब्दुल हक़ ने किया दूतावास में सम्पर्क
वे कादीपुर नगर पंचायत के तुलसी नगर मोहल्ला निवासी अब्दुल हक से मिले और अपनी दुख भरी दास्तां बयां की, अब्दुल हक ने मोहम्मद मुंशी को भरोसा दिलाते हुए मृतक शफीक के शव को भारत वापस लाने की बात कही, उन्होंने विदेश मंत्री को पत्र लिखकर सऊदी अरब में स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क कर सारी घटना से अवगत कराया.
शव को भारत वापस भेजने की मांग किया. अब्दुल हक के लगातार संपर्क और प्रयास का परिणाम रंग लाया, संदिग्ध परिस्थितियों में हुई शफीक की मौत पर जांच प्रक्रिया पूर्ण होकर सऊदी अरब सरकार शव भारत भेजने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दिया.
गांव के कब्रिस्तान में किया गया सुपुर्द खाक
रियाद स्थित भारतीय दूतावास ने 1 नवंबर को शफीक का शव भारत भेज दिया. अब्दुल हक के इस नेक कदम को लेकर क्षेत्र के लोगो ने खुशी जताई है. उधर बेटे का शव देखकर मां का रो-रोकर बुरा हाल रहा, उसे गांव के ही कब्रिस्तान में सुपुर्द खाक किया गया है.