गर्मी से दुनियाभर के देश झुलस रहे हैं. मौसन विभाग ने चेताया है कि भारत के कई इलाकों में भीषण लू चल सकती है. गर्मियों की शुरूआत तो बहुत पहले से हो गई है, लेकिन खगोलीय तौर पर नॉर्थ हेमिस्फीयर में गर्मी का मौसम आज (21 जून) से शुरू होता है. इसे ही तकनीकी भाषा में समर सोल्स्टिस (Summer solstice) कहा जाता है. कई लोग इसे ग्रीष्म संक्रांति के नाम से भी जानते हैं. आज साल का सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होगी. आइए समझते हैं कि आखिर जून में क्यों साल का सबसे दिन पड़ता है.
ग्रीष्म संक्रांति हर साल आमतौर पर 20 से 22 जून के बीच पड़ती है. नासा के मुताबिक, इस साल वैश्विक स्तर पर ग्रीष्म संक्रांति 20 जून को होगी. भारत में, यह 21 जून को होगा. इस वक्त सूरज आम दिनों के मुकाबले आसमान में ज्यादा ऊंचाई पर नजर आता है. एक तरफ जहां 21 जून नॉर्थ हेमिस्फीयर में गर्मी के आगाज का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ साउथ हेमिस्फीयर में ये सर्दियों के शुरू होने का संकेत है.
जून संक्रांति का क्या कारण है?
जून संक्रांति को समझने से पहले धरती के हेमिस्फीयर समझना जरूरी हैं. ज्योग्राफी में हमें बताया जाता है कि पृथ्वी के बीच में खींची गई एक काल्पनिक रेखा उसे दो बराबर भागों में बांटती है. इस लाइन को इक्वेटर कहते हैं. इस लाइन के ऊपरी हिस्से को नॉर्थ हेमिस्फीयर और नीचे वाले हिस्से को साउथ हेमिस्फीयर कहते हैं. भारत, नॉर्थ हेमिस्फीयर में आता है.
जून संक्रांति का मूल कारण है सूरज का चक्कर लगाते हुए धरती का अपनी एक्सिस पर 23.44° पर झुका होना. इस झुकाव की वजह से पृथ्वी पर मौसम बदलते हैं. इसके बिना, उत्तरी और दक्षिणी दोनों हेमिस्फीयर को पूरे साल समान रोशनी मिलेगी.
21 जून क्यों सबसे लंबा दिन होता है?
जून संक्रांति के दौरान नॉर्थ हेमिस्फीयर सूर्य की ओर सबसे ज्यादा झुका हुआ होता है जबकि दक्षिणी हेमिस्फीयर दूर झुका हुआ होता है. इस वजह से ऊपरी हेमिस्फीयर पर आम दिनों से ज्यादा सूरज की रोशनी पड़ती है. सूरज आसमान में अपने सबसे ऊंचे और सबसे लंबे रास्ते पर चलता है, जिससे दिन के उजाले का समय बढ़ जाता है.
सूरज के इतने लंबे समय तक आसमान में बने रहने की वजह से इस खगोलीय घटना को सॉलस्टिस नाम मिला है.सॉलस्टिस शब्द लैटिन शब्दों से बना है जिसका अर्थ है ‘सूरज’ और ‘रुकना’, क्योंकि पहले के लोग सोचते थे कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूरज अपनी जगह रुक सा गया है.
इस दौरान नॉर्थ हेमिस्फीयर में सूरज पूरे दिन आकाश में ऊंचा रहता है और उसकी किरणें पृथ्वी पर ज्यादा सीधे कोण पर पड़ती हैं, जिससे मौसम गर्म हो जाता है. इसलिए, इसे ग्रीष्म संक्रांति कहते हैं.
21 जून के बाद क्या होगा?
21 जून के बाद 21 सितंबर के आसपास तक दिन और रात की अवधि बराबर हो जाती है. इसके बाद दिन के मुकाबले रात बड़ी होने लगती है. यह प्रक्रिया 23 दिसंबर तक जारी रहती है, जब साल की सबसे लंबी रात होती है. इस मौके पर सूरज अपने सबसे दक्षिणी बिंदु पर होता है. इसकी किरणें नॉर्थ हेमिस्फीयर से एक तिरछे कोण पर टकराती हैं, जिससे सर्दियों की कमजोर धूप पैदा होती है.
साल में दो बार ऐसा होता है जब पृथ्वी की धुरी न तो सूर्य की ओर झुकी होती है और न ही सूर्य से दूर, जिसके वजह से उस दिन समान अवधि के दिन और रात होते हैं. ऐसा 21 मार्च (वर्नल विषुव) और 22 सितंबर (शरद ऋतु विषुव) के करीब घटित होता है.