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सुपौल: ठेके पर होता काम…, खाता के भाड़े का होता भुगतान, जानिए पूरा मामला

सुपौल: मजदूरों को अपने घर पर कम से कम एक सौ दिनों का काम मिले इसके लिए मनरेगा योजना का संचालन किया जाता है. यह बातें कागज पर ही लागू होती है. धरातल पर ऐसा कुछ नहीं होता. होता यह है कि, काम पेटी कांट्रेक्ट पर देकर पूरा कर लिया जाता है. और पसंदीदा कुछ मजदूरों के नाम से मस्टर राल भरकर मजदूरी की राशि की निकासी कर ली जाती है. जिनके खाता में राशि दी जाती है उन्हें खाता के भाड़े का नाम मात्र भुगतान किया जाता है. शेष राशि योजना के संचालक लेकर जहां-जहां दिया जाना जरूरी होता है वहां-वहां भुगतान कर योजना का वारा-न्यारा कर रहे हैं. सुपौल उप शाखा नहर के पास से टेंगराहा जाने वाली माइनर में चल रहे काम की पड़ताल के दौरान यह बातें सामने आई. यहां काम पेटी कांट्रेक्ट पर देकर मजदूरों को एक सौ फीट काम करने पर चार हजार रुपये दिए जाते हैं.

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एक मजदूर को इस काम को पूरा करने में 20 दिन लगता है. मतलब इन्हें दो सौ रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है. जो मजदूर यहां काम कर रहे उनका जाब कार्ड भी नहीं लिया गया है. इस संबंध में सरायगढ़ पंचायत के कलानंद कुमार कहते हैं कि मनरेगा के काम में भारी गड़बड़ी हो रही है. जहां काम करने की जरूरत है वहां काम नहीं होता और जहां अधिक राशि की बचत होगी वहां काम किया जाता है. सरायगढ़ माइनर में पानी रहने के बावजूद काम होता है जो सही नहीं है. गेहूं फसल सिंचाई के समय मनरेगा का काम शुरू करना अपने आप में बड़ा सवाल है. पवन कुमार कहते हैं कि, मनरेगा के काम में पारदर्शिता रहनी चाहिए.

अधिकांश जगहों पर योजना स्थल पर बोर्ड नहीं लगाया जाता. अगर कहीं बोर्ड लगा दिया जाता है तो दो-तीन दिन के अंदर उसको या तो हटा दिया जाता या किसी न किसी तरीके से क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है ताकि आमलोग योजना पर खर्च होने वाली राशि को नहीं जान सके. अभी एक माइनर पर काम हो रहा है कहीं बोर्ड नहीं है और योजना का काम पूरा होने को है. इसकी जांच करनी चाहिए. लालू यादव कहते हैं कि, मनरेगा योजना की जांच नहीं होती है. कई जगहों पर मशीनरी से काम होता और राशि वैसे लोगों के खाते में जाती है जिनकाे काम की जानकारी भी नहीं है यह बंद होना चाहिए.

राजीव यादव कहते हैं कि, मनरेगा में पूरी पारदर्शिता की जरूरत है. उसी के खाते में राशि जानी चाहिए जो सही में काम करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. जिन मजदूरों के खाते में राशि जाती उनको योजना के बारे में जानकारी ही नहीं रहती है. योजना के कर्ता-धर्ता ऐसे मजदूरों के खाते से निकासी करवाते समय कुछ पैसे दे देते हैं. विनीत कुमार कहते हैं कि, मनरेगा योजना में सबसे पहले स्थल पर बोर्ड लगाया जाना चाहिए. अगर बिना बोर्ड का काम होता है तो उसको बंद कर देना चाहिए ताकि, दूसरी बार ऐसा नहीं हो. प्रमोद यादव कहते है कि, मनरेगा योजना को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाना चाहिए ताकि मजदूरों को सही में काम मिल सके. होता यह है कि जब मजदूर पलायन कर जाते तब कई बार मनरेगा का काम शुरू किया जाता ताकि, मजदूर नहीं मिलने की बात कही जा सके. स्थल पर 5 से 10 मजदूर होते और मस्टर राल 40 से 50 मजदूरों का बनाया जाता.

 

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