नोटों के कागज कारखाने में फर्जी तरीके से बना सुपरवाइजर:डेढ़ साल तक करता रहा नौकरी, किसी और से दिलवाई थी भर्ती परीक्षा

नर्मदापुरम स्थित सिक्योरिटी पेपर मिल (एसपीएम) में एक युवक पहचान छिपाकर डेढ़ साल तक नौकरी करता रहा, किसी को भनक तक नहीं लगी। मामला तब सामने आया, जब मिल में बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन कराया गया।

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बिहार के नालंदा जिले के तलहाड़ा गांव निवासी दीपक कुमार चौधरी (31) ने स्टोर सुपरवाइजर पद पर फर्जी तरीके से नियुक्ति हासिल की थी। कोतवाली पुलिस ने मंगलवार रात करीब 12.30 बजे उसके खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा का केस दर्ज कर लिया है।

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एसपीएम में स्टोर सुपरवाइजर के पद के लिए भर्ती इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग एंड पर्सनल सिलेक्शन (IBPS) के माध्यम से हुई थी। दीपक ने यह नौकरी 17 दिसंबर 2023 को जॉइन की। मई 2025 में जब एसपीएम ने आईबीपीएस से उसके बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन की मांग की, तब पता चला कि उसकी जगह किसी और ने परीक्षा दी थी।

बता दें कि एसपीएम भारतीय मुद्रा के कागज बनाने वाली संवेदनशील इकाई है। यहां करीब 700 कर्मचारी हैं। इनके अलावा करीब 300 कर्मचारी ठेके पर काम करते हैं। कंपनी में अंदर जाने और बाहर आने के लिए एक गेट पर सीआईएसएफ जांच करती है। इसके अलावा फेस रीडिंग भी होती है। ऐसे में फर्जी सुपरवाइज के करीब डेढ़ साल तक काम करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं।

पुलिस ने मामले में दो आरोपी बनाए दीपक कुमार को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद वह अपने गांव भाग गया। एसपीएम के डिप्टी मैनेजर अमित कुमार ने मामले में लिखित शिकायत दी थी, जिसकी जांच कोतवाली थाना पुलिस ने की। पुलिस ने दीपक के अलावा एक अन्य युवक को भी आरोपी बनाया है, जिसने संभवतः उसकी जगह परीक्षा दी थी।

‘IBPS करता है पूरी चयन प्रक्रिया’ एसपीएम के जनसंपर्क अधिकारी संजय भावसार ने बताया कि संस्थान में होने वाली सभी भर्तियां IBPS के माध्यम से होती हैं। परीक्षा 2023 में मुंबई में आयोजित हुई थी। परीक्षा के बाद चयनित उम्मीदवारों की सूची एसपीएम को प्राप्त होती है। दस्तावेज सत्यापन और बायोमेट्रिक पुष्टि के बाद ही स्थायी नियुक्ति दी जाती है।

कोतवाली थाना प्रभारी सौरभ पांडे ने बताया, दीपक कुमार ने IBPS की परीक्षा खुद न देकर किसी और से दिलाई थी। डेढ़ साल तक नौकरी करने के बाद बायोमेट्रिक सत्यापन में फर्जीवाड़ा सामने आया। केस दर्ज कर लिया गया है।

परिजन बोले- खुद इस्तीफा देकर आया आरोपी दीपक कुमार से संपर्क किया। दैनिक भास्कर से कॉल पर बातचीत में दीपक के भाई राहुल कुमार ने कहा, अगर वह गलत था तो एक साल तक काम कैसे करने दिया गया। एसपीएम में अंदर-बाहर जाने पर बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगती है।

राहुल का दावा है कि दीपक खुद नौकरी छोड़कर आया है। बिहार से नर्मदापुरम काफी दूर था इसलिए दीपक ने इस्तीफा दिया। बिहार सिविल सर्विस समेत अन्य परीक्षा दी है। उसमें उसका सिलेक्शन का चल रहा है।

स्थायी नियुक्ति से पहले होता है बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन परीक्षा पास करने के बाद एसपीएम सिलेक्टेड व्यक्ति के डॉक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन करता है। इसके बाद उसे निगरानी में रखकर अस्थाई रूप से नियुक्ति दी जाती है। इस अवधि में शैक्षणिक, जाति, अनुभव प्रमाणपत्र और पुलिस वेरिफिकेशन कराया जाता है। पूरी प्रोसेस के बाद ही कर्मचारी की स्थायी नियुक्ति की जाती है।

स्थायी नियुक्ति से पहले IBPS वेरिफिकेशन के लिए एसपीएम आया था। बायोमेट्रिक थंब वेरिफिकेशन के दौरान दीपक की पहचान फर्जी पाई गई। जिसने परीक्षा दी थी, उसकी फोटो और थंबप्रिंट, कर्मचारी दीपक से मेल नहीं खा रहे थे। फोटो से यह साफ नजर आ रहा था।

एसपीएम से शिकायती आवेदन मिलने के बाद 13 जून से पुलिस ने जांच शुरू की। एसपीएम के कई अधिकारियों के बयान लिए गए। इंटरनल जांच रिपोर्ट मंगवाई गई और वेरिफिकेशन रिपोर्ट भी प्राप्त की गई।

मामला सामने आने पर भी नहीं की निगरानी जब मामला सामने आया, तब एसपीएम ने पुलिस को सूचना नहीं दी। पहले पत्राचार किया गया। 31 मई को एसपी नर्मदापुरम को एक पत्र के माध्यम से जानकारी दी गई, जिसमें कानूनी कार्रवाई की बात लिखी गई थी। इसके बाद एसपी ऑफिस से कोतवाली थाने में जांच के लिए आवेदन आया। इस बीच दीपक कुमार, जो सरकारी क्वार्टर में रह रहा था, उस पर किसी तरह की निगरानी नहीं रखी गई। इसी फायदा फठाकर दीपक सामान समेत अपने गांव चला गया।

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