सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पुलिस की घटिया और दोषपूर्ण जांच के चलते 3 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या करने के जुर्म में फांसी की सजा पाए व्यक्ति को बरी कर दिया. शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि कथित अपराध के बाद आरोपी द्वारा दिए गए बयान कि वह ‘तनावग्रस्त’ था, उसको गलत तरीके से न्यायेतर स्वीकारोक्ति मान लिया गया. जबकि इस तरह के स्वीकारोक्ति स्वाभाविक रूप से कमजोर माना जाता है.
न्यायिक स्वीकारोक्ति का मतलब यह होता है कि आपराधिक मामले में न्यायिक कार्यवाही से बाहर किसी के सामने अपराध को स्वीकार करना. जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ कहा है कि इस तरह की स्वीकारोक्ति हमेशा कमजोर होती है और इसकी पुष्टि की जानी चाहिए. इस मामले में जिस गवाह से आरोपी ने कथित स्वीकारोक्ति की थी, उसने मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में इसका उल्लेख नहीं किया और मामले का एक बेहतर संस्करण पेश किया.
फांसी की सजा कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं- SC
पीठ ने 71 पन्नों के अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि ‘यदि किसी गवाह के समक्ष वास्तव में आरोपी ने अपने गुनाह कबूल किए थे, तो उस गवाह को तुरंत पुलिस के समक्ष इसका खुलासा करना चाहिए था. मुकदमे के दौरान एक बेहतर संस्करण पेश करने के बजाय सीआरपीसी धारा 164 के तहत दर्ज बयान की रिकॉर्डिंग के दौरान इसका उल्लेख करना नहीं भूलना चाहिए था.’
इसके साथ ही पीठ ने कहा है कि सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद हम यह कहने के लिए मजबूर हैं कि पुलिस द्वारा ‘दोषपूर्ण और घटिया’ जांच के चलते अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा. निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले में दर्ज निष्कर्ष अनुमानों पर आधारित हैं. इसलिए, अपीलकर्ता को दोषी ठहराने और फांसी की सजा देने का फैसला कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं हैं.
रामकीरत मुनीलाल गौड़ 12 सालों से जेल में हैं बंद
अपीलकर्ता पर वर्ष 2013 में 3 साल 9 माह की बच्ची से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया गया था. इस मामले में निचली अदालत ने मार्च, 2019 में युवक को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने भी नवंबर, 2021 में फांसी की सजा को बहाल रखा था. यह घटना महाराष्ट्र के ठाणे जिला के कासरवडवली थाने में 30 सितंबर, 2013 को दर्ज हुआ था. इस मामले में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले रामकीरत मुनीलाल गौड़ के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था.
सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले में कहा है कि पुलिस द्वारा अपराध की घटिया जांच के बावजूद, न्याय देने के लिए निचली अदालतों के अति उत्साही दृष्टिकोण, इस अर्थ में कि किसी को अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया है. पीठ ने कहा कि घटना के समय आरोपी लगभग 25 साल एक युवक था, जो पिछले 12 वर्षों से अधिक समय तक जेल में रहा है और उसके सिर पर 6 वर्षों से अधिक समय तक आसन्न मृत्युदंड की तलवार लटकी रही है.