सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को POCSO एक्ट के एक मामले में दोषी ठहराए गए एक शख्स को बरी करने का बड़ा फैसला सुनाया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की तरफ से इस कृत्य को कभी अपराध नहीं माना गया था, जबकि कानूनी प्रक्रिया ने ही उसे ज्यादा परेशान किया. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि आरोपी को कोई सजा नहीं होगी. बता दें, आरोपी अब पीड़िता का पति है और दोनों अपने बच्चे के साथ पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया था, जिसके बाद अब यह फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के इस POCSO मामले में दिए गए फैसले के दौरान की गई विवादास्पद टिप्पणियों के बाद आया था.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पलट दिया था फैसला
बता दें कि इस मामले की सुनवाई 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट में हुई थी. तब हाईकोर्ट ने आरोपी युवक को बरी करते हुए कुछ विवादित टिप्पणी की थी. हाईकोर्ट ने उसकी 20 साल की सजा को पलटते हुए नाबालिग लड़कियों और उनके तथाकथित नैतिकता को लेकर आपत्तिजनक बातें कही थीं. हाईकोर्ट ने कहा था कि युवा लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले का लिया संज्ञान
इन टिप्पणियों पर विवाद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया था. 20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और युवक को फिर दोषी करार दे दिया था. हालांकि, आरोपी को दोषी करार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे तत्काल सजा नहीं सुनाई. कोर्ट ने इससे पहले पीड़ित लड़की की वर्तमान स्थिति और उसकी राय जानने के लिए समिति के गठन का आदेश दिया.
विशेषज्ञ समिति का गठन
इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन करें, जिसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS) या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) जैसे संस्थानों के विशेषज्ञ और एक बाल कल्याण अधिकारी शामिल थे. इस समिति ने जांच के बाद कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी. जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए किया.
अपराध के रूप में स्वीकार नहीं
कोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्य सभी के लिए आंखें खोलने वाले हैं. यह कानूनी व्यवस्था को उजागर करता है. हालांकि घटना को कानून में अपराध के रूप में देखा गया था, लेकिन पीड़िता ने इसे अपराध के रूप में स्वीकार नहीं किया. समिति ने दर्ज किया कि यह कानूनी अपराध नहीं था, जिसने पीड़िता को कोई आघात पहुंचाया, बल्कि यह उसके बाद के परिणाम थे, जिसने उसे भारी नुकसान पहुंचाया.
सजा का मुद्दा सबसे बड़ी समस्या
परिणाम के रूप में उसे पुलिस, कानूनी प्रणाली और आरोपी को सजा से बचाने के लिए लगातार संघर्ष का सामना करना पड़ा. सजा का मुद्दा सबसे बड़ी समस्या है. कोर्ट ने कहा कि समिति की रिपोर्ट हमारे सामने है. हालांकि पीड़िता ने घटना को अपराध के रूप में नहीं देखा, लेकिन उसे इसके कारण तकलीफ हुई. ऐसा इसलिए था क्योंकि पहले चरण में पीड़िता हमारे समाज, कानूनी व्यवस्था और परिवार की कमियों के कारण सूचना देने का विकल्प नहीं बना पाती थी.
कानूनी व्यवस्था ने किया विफल
वास्तव में उसे सूचित विकल्प बनाने का कोई अवसर ही नहीं मिला. समाज ने उसे जज किया, कानूनी व्यवस्था ने उसे विफल कर दिया और उसके अपने परिवार ने उसे त्याग दिया. अब वह उस चरण में है, जहां वह अपने पति को बचाने के लिए बेताब है. अब वह भावनात्मक रूप से अभियुक्त के प्रति अधिक प्रतिबद्ध है और अपने छोटे परिवार के प्रति बहुत अधिक अधिकारपूर्ण हो गई है.
यही कारण है कि हम अनुच्छेद 142 के तहत सजा न देने की शक्ति का प्रयोग करने का आदेश दे रहे हैं. हमने राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए हैं और फिर हमने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के संबंधित विभाग को नोटिस जारी किया है, ताकि सुझावों के आधार पर आगे अन्य आदेश पारित किए जा सकें.