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‘न्यूजक्लिक’ संपादक को UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, तुरंत रिहा करने के आदेश दिए

न्यूजक्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बडी राहत मिली है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं. अब प्रबीर पुरकायस्थ ट्रायल कोर्ट में बेल बॉड भरकर रिहा हो जाएंगे. इस मामले में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने फैसला सुनाया. UAPA के तहत गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आया है.

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इस मामले में सवालों के घेरे में क्यों आईं दिल्ली पुलिस

सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को पोर्टल न्यूजक्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तारी के बाद उनके वकील को सूचित किए बिना मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने में जल्दबाजी के लिए दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाए थे. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस तथ्य पर भी हैरानी जताई कि पुरकायस्थ के वकील को रिमांड आवेदन दिए जाने से पहले ही रिमांड आदेश पारित कर दिया गया था.

कथित चीनी फंडिंग के मामले हुई थीं गिरफ्तारी

पीठ ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत एक मामले में उनकी गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली पुरकायस्थ की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. पोर्टल के माध्यम से राष्ट्र-विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कथित चीनी फंडिंग के मामले में पिछले साल अक्टूबर को गिरफ्तारी के बाद से पुरकायस्थ हिरासत में हैं. सुनवाई के दौरान पुरकायस्थ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें 3 अक्टूबर, 2023 की शाम को गिरफ्तार किया गया था. उन्हें अगले दिन सुबह 6 बजे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था.

पीठ ने पूछा सवाल कि पुरकायस्थ के वकील क्यों नहीं किया गया सूचित

कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि अतिरिक्त लोक अभियोजक के साथ लीगल एड वकील ही मौजूद थे. यहां तक कि पुरकायस्थ के वकील को सूचित नहीं किया गया था. जब पुरकायस्थ ने इस पर आपत्ति जताई तो जांच अधिकारी ने उनके वकील को टेलीफोन के माध्यम से सूचित किया और रिमांड आवेदन वकील को व्हाट्सएप पर भेजा गया. पीठ ने ASG एसवी राजू से पूछा कि पुरकायस्थ के वकील को सूचित क्यों नहीं किया गया.

सुबह 6 बजे उसे पेश करने की जल्दबाजी क्या थी जबकि उन्हें पिछले दिन शाम 5.45 बजे गिरफ्तार किया गया था. आपके पास पूरा दिन था. पीठ ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के लिए आवश्यक है कि रिमांड आदेश पारित होने पर पुरकायस्थ का वकील उपस्थित रहे. राजू ने पीठ को तर्क देकर समझाने की कोशिश की लेकिन पीठ ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया. लंबी बहस के बाद आखिरकार पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

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