सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 1984 की भोपाल गैस ट्रेजडी से जुड़े जहरीले कचरे मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. ये याचिका मध्य प्रदेश के पीथमपुर में कचरा जलाने के खिलाफ दायर की गई थी. जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया कि ‘जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पहले ही इस मामले को उठाया गया और कोई अंतरिम आदेश नहीं मिला, तो अब छुट्टियों के दौरान इस पर रोक क्यों लगाई जाए? कितने सालों से हम इस कचरे से लड़ रहे हैं?’
2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था. इस हादसे में 5,479 लोगों की मौत हुई और पांच लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में से एक माना जाता है. इस हादसे के बाद फैक्ट्री में करीब 377 टन जहरीला कचरा छूट गया, जिसका निपटान अब तक नहीं हो सका.
क्या है पीथमपुर में कचरा निपटान का विवाद?
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर 2024 को अधिकारियों को इस कचरे को भोपाल से हटाकर पीथमपुर में निपटाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने 40 साल बाद भी कचरे को हटाने में देरी पर नाराजगी जताई थी और चार हफ्तों की समयसीमा दी थी. इसके बाद 1 जनवरी 2024 को 337 टन कचरा 12 सीलबंद कंटेनरों में पीथमपुर ले जाया गया. हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने पीथमपुर में कचरे को जलाने पर आपत्ति जताई. उनका कहना है कि ‘निपटान स्थल के एक किलोमीटर के दायरे में चार-पांच गांव हैं और गंभीर नदी पास से बहती है, जो इंदौर की 40% आबादी को पानी सप्लाई करने वाले यशवंत सागर बांध में मिलती है.’ याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि कचरे को जलाने से पर्यावरण और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है. साथ ही इसकी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (Standard operating procedure) या सफल परीक्षण की रिपोर्ट भी उपलब्ध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का रुख
27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI), राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के विशेषज्ञों की राय पर विचार किया गया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट में अपनी शिकायतें उठाने की सलाह दी. 4 जून को याचिकाकर्ता ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह मामला हाईकोर्ट की निगरानी में है और वहां उचित कदम उठाए जा सकते हैं.