सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को लताड़ा, छत्तीसगढ़ के केस में पूछा- कहां हैं सबूत

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए उसकी जांच प्रक्रिया की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि ED बिना ठोस सबूत के आरोपियों पर इल्ज़ाम लगाने की आदत को तुरंत बंद करे। इस टिप्पणी ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। विपक्षी दल पहले से ही ईडी की इस आदत को आधार बनाकर मोदी सरकार पर तीखा हमला करते रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि ED का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने और उनकी आवाज़ दबाने के लिए किया जा रहा है।

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लाइल लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 5 मई को मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में ED की जांच प्रक्रिया को “गैर-पारदर्शी” करार दिया। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि बिना सबूत के इल्ज़ाम लगाना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह कानून के शासन के खिलाफ भी है। कोर्ट ने ED को अपनी जांच को पारदर्शी बनाने और मानवाधिकारों का पालन करने का निर्देश दिया।

यह पहली बार नहीं है जब ED की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं। जनवरी 2025 में, हरियाणा के पूर्व कांग्रेस विधायक सुरेंद्र पंवार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ED की 15 घंटे की लगातार पूछताछ को “अमानवीय” और “क्रूर” बताया था। कोर्ट ने तब भी ED को अपनी प्रक्रिया में सुधार लाने की चेतावनी दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय ओका ने 2,000 करोड़ रुपये के छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी की ज़मानत याचिका की सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कई टिप्पणियां कीं। छत्तीसगढ़ के इस हाई प्रोफाइल मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल के आवास पर करीब दो महीने पहले छापा मारा गया था। ईडी ने आरोप लगाया था कि राज्य के उच्च अधिकारियों, व्यक्तियों और राजनीतिक नेताओं ने इस घोटाले को अंजाम दिया था, जिसमें डिस्टिलर से करीब 2,000 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गई थी और देशी शराब को बिना बताए बेचा जा रहा था।

जस्टिस ओका ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू से कहा, “आपने एक खास आरोप लगाया है कि उसने 40 करोड़ कमाए हैं, अब आप इस व्यक्ति का इस कंपनी या किसी अन्य कंपनी से संबंध नहीं दिखा पा रहे हैं। आपको यह बताना चाहिए कि क्या वह इन कंपनियों का निदेशक है या नहीं, क्या वह बहुसंख्यक शेयरधारक है या नहीं, क्या वह प्रबंध निदेशक है। कुछ तो होना ही चाहिए।”

राजू ने पीठ से कहा, “कोई व्यक्ति किसी कंपनी को नियंत्रित कर सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वह कंपनी के संचालन के लिए जिम्मेदार हो। मैं बयानों से दिखाऊंगा कि वह कंपनी से कैसे जुड़ा है।”

29 अप्रैल को इसी मामले में एक अन्य सुनवाई में जस्टिस ओका और जस्टिस उज्जल भुयां की बेंच ने टिप्पणी की थी: “जांच अपनी गति से चलेगी। यह अनंत काल तक चलती रहेगी। तीन आरोपपत्र दाखिल किए जा चुके हैं। आप व्यक्ति को हिरासत में रखकर उसे दरअसल दंडित कर रहे हैं। आपने प्रक्रिया को ही सजा बना दिया है।”

कुछ दिनों बाद जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की तीन जजों की पीठ ने ईडी को वैज्ञानिक जांच करने के लिए कहा था। पीठ ने कहा था, “आपको अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। सभी मामले जहां आप संतुष्ट हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, आपको उन मामलों को अदालत में स्थापित करने की आवश्यकता है।” पीठ ने ईडी की ओर से पेश एएसजी राजू से कहा था, “आपको अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। सभी मामले जहां आप संतुष्ट हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, आपको उन मामलों को अदालत में स्थापित करने की आवश्यकता है।”

दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कथित दिल्ली वक्फ बोर्ड घोटाले में कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी आप विधायक अमानतुल्लाह खान को जमानत देते हुए मुकदमे में देरी के लिए ईडी की खिंचाई की थी। हाईकोर्ट ने कहा था, “अपनी ताकत और संसाधनों को त्वरित सुनवाई पर लगाने के बजाय राज्य और उसकी एजेंसियों से स्वतंत्रता के समान समर्थक होने की अपेक्षा की जाती है।”

विपक्षी दल ईडी के राजनीतिक प्रतिशोध के मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहे हैं। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने एक स्वर में दावा किया कि ED को मोदी सरकार ने “विपक्ष मिटाओ सेल” बना दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “ED अब कानून का रखवाला नहीं, बल्कि सियासी हथियार बन चुका है।” AAP के संजय सिंह ने आरोप लगाया कि ED, CBI और आयकर विभाग का इस्तेमाल केवल विपक्षी नेताओं को डराने और उनकी आवाज़ दबाने के लिए हो रहा है। विपक्ष का यह भी दावा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ED की कार्रवाइयाँ उन राज्यों में तेज़ हुई हैं, जहां गैर-भाजपा सरकारें सत्ता में हैं। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने 2022 में कहा था कि ED का दुरुपयोग देश की लोकतांत्रिक नींव को कमज़ोर कर रहा है, और सुप्रीम कोर्ट की ताज़ा टिप्पणी ने उनके दावों को और बल दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की ताजा फटकार के बाद सवाल उठता है कि क्या ED अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करेगी? और क्या मोदी सरकार विपक्ष के इन गंभीर आरोपों का जवाब देगी? क्या यह मुद्दा देश के एक बड़े वर्ग को उसका नजरिया बदलने में मदद करेगा।

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