रिश्वतखोर दवा कंपनियों पर सुप्रीम कोर्ट का वार! डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवा का आदेश जल्द? 

सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा कंपनियों को लेकर गुरुवार को तीखी टिप्पणी की है. उसने कहा है कि अगर डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखना कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया जाए तो दवा कंपनियों की ओर से डॉक्टरों को तर्कहीन दवाएं लिखने और महंगे ब्रांडों को बढ़ावा देने के लिए कथित रूप से रिश्वत देने का मुद्दा सुलझ जाएगा. दरअसल, एक मामले पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ सुनवाई कर रही है, जिसमें कोर्ट ने इस तरह की टिप्पणी की है.

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कोर्ट का कहना है कि जब तक फार्मास्युटिकल मार्केटिंग के यूनिफॉर्म कोड को कानून का रूप नहीं दे दिया जाता, तब तक कोर्ट दवा कंपनियों की ओर से अनैतिक मार्केटिंग प्रक्टिसेस को नियंत्रित और रेगुलेट करने के लिए गाइडलाइन निर्धारित कर सकता है. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया किया कि प्रतिवादियों ने जवाबी हलफनामा दायर किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि एक हाई पावर्ड कमेटी नियुक्त की गई है. हालांकि उन्होंने टिप्पणी की कि समिति ने सिफारिश के रूप में क्या सुझाव दिया है, इस बारे में रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है.

दवा लिखने को लेकर क्या कोई कानूनी आदेश है? SC ने पूछा

इस दौरान जस्टिस मेहता ने पूछा कि क्या कोई कानूनी आदेश है कि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी चाहिए, किसी विशिष्ट कंपनी या ब्रांड की दवाएं नहीं. जस्टिस मेहता ने कहा, ‘यह आपकी प्रार्थना के अनुरूप होगा. राजस्थान में अब एक कार्यकारी निर्देश है कि हर चिकित्सा पेशेवर को जेनेरिक दवा लिखनी होगी. वे किसी भी कंपनी के नाम से दवा नहीं लिख सकते. इससे चीजों का ध्यान रखा जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि यह विजय मेहता मामले में एक जनहित याचिका में पारित निर्देश के माध्यम से था.

वकील ने जवाब दिया कि कोई कानूनी आदेश नहीं है और केवल एक “स्वैच्छिक संहिता” मौजूद है जिसके अनुसार डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे से संबंधित एक मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष था. इस पर, जस्टिस मेहता ने सुझाव दिया कि वह इस पहलू पर गौर करें. जस्टिस मेहता ने कहा, ‘बस इस दिशा में सोचें, अगर यह निर्देश पूरे देश में दिया जाए, तब इन सभी बातों का ध्यान रखा जाएगा.’

कोर्ट 24 जुलाई को करेगा सुनवाई

उन्होंने कहा कि राजस्थान को एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है. प्रतिवादी के वकील ने बताया कि वास्तव में भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा सभी डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने का निर्देश दिया गया है. शुरुआती सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि मामले में कुछ समय लगेगा, इसलिए वह इसे अवकाश के बाद सुनवाई के लिए रखेगा. अब कोर्ट मामले में 24 जुलाई को सुनवाई करेगा. दरअसल, फार्मा उद्योग में अनैतिक मार्केटिंग प्रक्टेसेस की प्रभावी रोकथाम और नियंत्रण की मांग की जा रही है. इस संबंध में याचिका अधिवक्ता सुरभि अग्रवाल की ओर से तैयार की गई थी और अधिवक्ता अपर्णा भट्ट के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है.

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