घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 498A के तहत दर्ज मामले में केस दर्ज होने के 2 महीने तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं होगी बल्कि मामला पहले फैमिली वेलफेयर कमेटी (FWC ) को भेजा जाएगा. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की गाइडलाइन का भी जिक्र किया.
इलाहाबाद HC की गाइडलाइन को मंजूरी
शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइंस को मंजूरी दे दी है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इन गाइडलाइंस को सभी राज्यों- जिलों में लागू किया जाए, जिनमें दो महीने का कूलिंग-ऑफ पीरियड और फैमिली वेलफेयर कमेटी (FWC) की अनिवार्य भागीदारी शामिल है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिवीजन नंबर 1126 ऑफ 2022 की सुनवाई के दौरान ये निर्देश जारी किए थे. यह गाइडलाइंस सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया से प्रेरित है.
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट जिस केस की सुनवाई कर रही थी उसमें पत्नी ने पति और उसके परिवार पर झूठे आपराधिक मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो पीड़ा उन्होंने झेली, उसकी भरपाई किसी भी रूप में नहीं की जा सकती. इस प्रकार के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए आपराधिक मामलों को खारिज किया और विवाह को समाप्त घोषित किया.
महिला आईपीएस अधिकारी ने अपने पूर्व पति और ससुराल वालों से वैवाहिक विवाद के दौरान उनको झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भिजवा दिया था. इस दौरान उनको शारीरिक और मानसिक पीड़ा सहनी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया जिसमें पत्नी को प्रति माह 1.5 लाख रुपये का भरण पोषण देने का आदेश दिया था. महिला आईपीएस अधिकारी और पुरुष दिल्ली का व्यवसायी है. दोनों ने 2015 में शादी की थी. तीन साल बाद 2018 में दोनों अलग हो गए. महिला ने अपने गृहनगर यूपी लौटने के बाद 2022 में आईपीएस जॉइन किया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत मिले शक्तियों को इस्तेमाल करते हुए यह आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि बेटी अपनी मां के पास रहेगी. वहीं कोर्ट ने पिता को विजिटेशन राइट्स दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले का निपटारा कर दिया है. इतना ही नहीं कोर्ट ने पति और उसके परिवार को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने महिला अधिकारी को बिना शर्त माफी मांगने और चेतावनी देते हुए कहा कि वह अपने पद और ताकत का दुरुपयोग कर पति या उसके परिवार को किसी भी प्रकार मानसिक या शारीरिक नुकसान न पहुचाए.
कूलिंग-ऑफ पीरियड: FIR दर्ज होने के बाद दो महीने तक गिरफ्तारी या जबरन कोई कार्रवाई नहीं होगी.
FWC को रेफरल: सभी योग्य मामलों को FWC के पास मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा.
उपयुक्त मामले: केवल 498A IPC के तहत दर्ज मामले, जिनमें IPC की धारा 307 जैसी गंभीर धाराएं न हों.
FWC की संरचना: हर जिले में कम से कम 3 सदस्यों की कमेटी होगी—जिनमें युवा वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, रिटायर्ड जज या वरिष्ठ अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां शामिल हो सकती हैं.