सुप्रीम कोर्ट का क्रेडिट कार्ड पर बड़ा अपडेट, टाइम पर नहीं करते पेमेंट तो हो जाएं सावधान

क्रेडिट कार्ड यूजर्स के लिए निराश करने वाली खबर है, सुप्रीम कोर्ट ने आज क्रेडिट कार्ड बकाया पर ब्याज की सीमा 30% तय करने के एनसीडीआरसी के फैसले को रद्द कर दिया है. जिसके बाद अगर आप समय पर क्रेडिट कार्ड का भुगतान नहीं करते हैं तो आपको मोटी ब्याज देनी पड़ सकती है.

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2008 के फैसले में एनसीडीआरसी ने क्रेडिट कार्ड बकाया पर 36 प्रतिशत से 49 प्रतिशत के बीच ब्याज दर वसूलने के लिए बैंकों को कड़ी फटकार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 2008 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बैंक क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूलना अनुचित व्यापार व्यवहार के समान होगा.

दो जजों की बेंच ने कही ये बात

जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एचएसबीसी बनाम आवाज फाउंडेशन मामले में फैसला देते हुए कहा पूर्ववर्ती कारणों के मद्देनजर एनसीडीआरसी के फैसले को रद्द किया जाता है. फैसले की विस्तृत प्रति की प्रतीक्षा है.

2008 में एनसीडीआरसी ने क्रेडिट कार्ड बकाया पर 36 प्रतिशत से 49 प्रतिशत के बीच ब्याज दर वसूलने के लिए बैंकों की कड़ी आलोचना की थी. उपभोक्ता फोरम ने माना था कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस प्रथा को विनियमित करने में विफल रहा है.

एनसीडीआरसी ने निर्देश में कहा था

  • नियत तारीख पर पूरा भुगतान करने या न्यूनतम देय राशि का भुगतान करने में विफलता के लिए बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड धारकों से 30 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक की दर से ब्याज वसूलना एक अनुचित व्यापार व्यवहार है.
  • डिफ़ॉल्ट की एक अवधि के लिए दंडात्मक ब्याज केवल एक बार लिया जा सकता है और इसे पूंजीकृत नहीं किया जाएगा.
  • मासिक अवकाश के साथ ब्याज वसूलना भी एक अनुचित व्यापार व्यवहार है.
  • इसलिए बैंकों को निर्देश दिया जाता है कि वे उपरोक्त अनुचित व्यापार प्रथाओं में शामिल न हों या उन्हें न दोहराएं.

एनसीडीआरसी ने पाया कि भारतीय रिजर्व बैंक

(आरबीआई) ने क्रेडिट कार्ड सहित क्रेडिट सुविधाओं पर बैंकों द्वारा ली जाने वाली ब्याज दरों को सीमित करने के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं. विनियमन की इस कमी ने बैंकों को उच्च-ब्याज दरें निर्धारित करने की अनुमति दी, जिससे संभावित रूप से उपभोक्ताओं, विशेषकर कमजोर वित्तीय स्थितियों में उपभोक्ताओं का शोषण हुआ. आयोग ने कहा कि ऐसी प्रथाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अनुचित व्यापार अभ्यास माना जा सकता है.

एनसीडीआरसी ने वित्तीय संस्थानों को अत्यधिक ब्याज दरें वसूलने से रोकने के लिए नियामक निरीक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे उपभोक्ता शोषण हो सकता है. इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि एक कल्याणकारी राज्य में, वित्तीय संस्थानों को उपभोक्ताओं की वित्तीय कमजोरियों का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. आयोग ने यह भी बताया कि हालांकि कुछ राज्यों में साहूकारों को एक विशेष ब्याज दर से अधिक शुल्क वसूलने से रोकने वाले कानून थे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए ऐसा कोई विनियमन नहीं था.

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