इस्कॉन बेंगलुरु और इस्कॉन मुंबई के बीच दशकों से जारी एक मंदिर के मालिकाना हक पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बेंगलुरु के हरे कृष्ण मंदिर की संपत्ति पर हक इस्कॉन मुंबई का बनता है. सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद अब हरे कृष्ण मंदिर पर इस्कॉन बेंगलुरु का नियंत्रण होगा.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ए. एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने लंबी सुनवाई के बाद पिछले साल 24 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. और अब आज अदालत ने करीब 10 महीने बाद इस चर्चित मामले पर फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक जस्टिस ए. एस. ओका ने इस पूरे फैसले को लिखा है.
पूरा विवाद 4 प्वाइंट में समझें
1. इस्कॉन बेंगलुरु ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दिया हुआ था. कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस्कॉन मुंबई के पक्ष में फैसला सुनाया था. ये पूरा विवाद बेंगलुरू में मौजूद अरसे पुराने हरे कृष्ण मंदिर और उसके शैक्षणिक संस्थान के मालिकाना हक को लेकर था. चूंकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुंबई के इस्कॉन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इसका नियंत्रण उन्हें दे दिया था, बेंगलुरु इस्कॉन को आपत्ति थी.
2. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. इस्कॉन बैंगलुरू ने 2 जून 2011 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपना फैसला 23 मई 2011 को दिया था. यानी करीब 14 साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया है. इस्कॉन बेंगलुरु की तरफ से इस मामले में पैरवी के. दास कर रहे थे.
3. इन्होंने ही हाईकोर्ट में भी मुकदमा लड़ा था. ये भी जान लें कि बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत ने इस्कॉन बेंगलुरु के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन फिर हाईकोर्ट में मामला पलट गया और मुंबई इस्कॉन को बढ़त मिल गई. अपने आप में ये एक दिलचस्प ममला रहा जहां एक ही संगठन, जिनका अध्यात्मिक ध्येय भी एक है, एक दूसरे के खिलाफ खड़े थे.
4. दरअसल, इस्कॉन बेंगलुरु कर्नाटक में रजिस्टर्ड संस्था है. इस्कॉन बेंगलुरु का कहना था कि वो हरे कृष्ण मंदिर का संचालन स्वतंत्र तरीके से पिछले कई दशकों से करती आ रही है. वहीं, इस्कॉन मुंबई की दलील थी कि इस्कॉन बेंगलुरु उनके मातहत आने वाली एक संस्था है, लिहाजा मंदिर पर मालिकाना हक उन्हीं का बनता है.