सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, यूपी के इंचार्ज हेडमास्टरों को मिलेगा पूरा वेतन और बकाया

उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत हजारों इंचार्ज हेडमास्टरों के लिए बुधवार का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें इंचार्ज हेडमास्टरों को हेडमास्टर के समान वेतन देने का निर्देश दिया गया था. यह निर्णय न केवल शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय का नया मानदंड भी स्थापित करता है.

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में सहायक अध्यापकों को “इंचार्ज हेडमास्टर” का दायित्व सौंपा गया.

ये शिक्षक हेडमास्टर के सभी कार्य करते थे, लेकिन उन्हें केवल सहायक अध्यापक का वेतन मिलता था.

त्रिपुरारी दुबे और अन्य शिक्षकों ने इस अन्याय के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश (30 अप्रैल 2025)

इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया: “कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए.”

निर्णय में कहा गया कि यदि कोई शिक्षक हेडमास्टर की जिम्मेदारी निभा रहा है, तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए.

कोर्ट ने राज्य सरकार को इन शिक्षकों को हेडमास्टर के वेतनमान और बकाया राशि देने का निर्देश दिया.

राज्य सरकार की प्रतिक्रिया

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

173 पेज की SLP दायर करते हुए मुख्य तर्क दिए:

किसी भी शिक्षक को प्रशासनिक आदेश से प्रधानाध्यापक का चार्ज नहीं दिया गया.

RTE Act, 2009 की धारा 25 के अनुसार कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों में प्रधानाध्यापक की आवश्यकता ही नहीं.

U.P. Basic Education Act, 1972 में इंचार्ज/ऑफिसिएटिंग प्रधानाध्यापक नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं.

सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प सुनवाई

कोर्ट की सख्त टिप्पणियां की. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को निम्नलिखित शब्दों में खारिज किया और कहा, “शिक्षकों का शोषण बंद कीजिए! हमारे देश का शिक्षा तंत्र पहले ही सबसे खराब स्थिति में है, और आप बिना हेड टीचर्स के विद्यालय चला रहे हैं!”

मुख्य बहस के बिंदु

नियमावली का प्रावधान: शिक्षकों की ओर से पेश अधिवक्ता ने नियमावली के पेज 70, पैराग्राफ 6 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि सीनियर-मोस्ट शिक्षक से हेडमास्टर का कार्य लिया जाएगा.

कार्य और वेतन का संबंध: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति उच्च पद का कार्य कर रहा है तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए.

प्रशासनिक लापरवाही: कोर्ट ने सरकार से पूछा कि यदि नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति नहीं हो रही है, तो इंचार्ज हेडमास्टरों को प्रमोशन क्यों नहीं दिया जा रहा?

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (13 अगस्त 2025)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में क्या-क्या

SLP खारिज की और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा.

वेतन समानता का सिद्धांत स्थापित किया कि कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए.

बकाया राशि देने का निर्देश दिया, जो 31 मई 2014 से देय होगी.

शोषण रोकने के लिए सरकार को कड़ा संदेश दिया.

जानें निर्णय के क्या-क्या होंगे प्रभाव

शिक्षकों पर प्रभाव

लगभग 50,000+ इंचार्ज हेडमास्टरों को लाभ.

6-8 वर्षों का बकाया वेतन मिलेगा.

मनोबल बढ़ने से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार की संभावना.

शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव

राज्य सरकार को अब या तो:

नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति करनी होगी या

इंचार्ज हेडमास्टरों को पूरा वेतन देना होगा

विद्यालय प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ेगी

शिक्षकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता

न्यायिक महत्

“कार्य के अनुरूप वेतन” का सिद्धांत स्थापित

सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों की मजबूत न्यायिक सुरक्षा

भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल

लंबित मुद्दे और भविष्य की चुनौतियां

वित्तीय बोझ

राज्य सरकार पर करोड़ों रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ

बकाया वेतन का भुगतान कैसे होगा, यह एक बड़ा सवाल

प्रशासनिक सुधार

नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता

TET योग्यता संबंधी विवादों का समाधान

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि पूरे देश में कार्य और वेतन की समानता के सिद्धांत को मजबूती प्रदान करता है। यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

कोर्ट की यह टिप्पणी कि “शिक्षकों का शोषण बंद कीजिए” सभी राज्य सरकारों के लिए एक सबक है कि वे शिक्षकों के अधिकारों का सम्मान करें और उन्हें उनके योगदान के अनुरूप पारिश्रमिक दें. शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं, और उनके साथ न्याय होना हर सभ्य समाज का कर्तव्य है. संत कबीर ने कहा है, “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय.” यह निर्णय वास्तव में गुरुओं (शिक्षकों) के प्रति हमारे समाज के ऋण को चुकाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है.

 

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