सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रद्धालु मंदिरों को जो धन दान करते हैं, उसका इस्तेमाल केवल धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों के लिए किया जा सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस धन का उपयोग विवाह हॉल जैसी व्यावसायिक सुविधाओं के निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता।
दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने 27 मंदिरों में विवाह हॉल बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके लिए लगभग 80 करोड़ रुपये की मंदिर निधि का इस्तेमाल किया जाना था। सरकार का कहना था कि इस योजना से गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ते विवाह स्थल मिल जाएंगे। लेकिन इस फैसले को मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि मंदिर की निधि का उपयोग सिर्फ धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों में होना चाहिए।
तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि श्रद्धालु विवाह हॉल बनाने के लिए मंदिरों में पैसा नहीं चढ़ाते। यह धन धार्मिक आस्था और पूजा-अर्चना से जुड़ा होता है। अदालत ने यह भी कहा कि मंदिर निधि का उपयोग शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे धर्मार्थ कार्यों में किया जा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी सवाल उठाया कि अगर मंदिर परिसर में विवाह समारोह होंगे और उसमें अनुचित गतिविधियां होंगी, तो क्या यह मंदिर की भूमि का सही इस्तेमाल होगा? अदालत ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मंदिरों को मिले दान को सरकारी या सार्वजनिक धन नहीं माना जा सकता। यह पूरी तरह श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा है और इसका उपयोग उसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए। कोर्ट ने हालांकि तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई जारी रखने का फैसला किया है और अगली तारीख 19 नवंबर तय की है।
यह फैसला मंदिर निधि के उपयोग को लेकर भविष्य के मामलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिशा तय करता है। अदालत ने दोहराया कि धार्मिक संस्थाओं को मिले धन का दुरुपयोग किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है।