सूरजपुर का छात्रावास बेहाल: 50 साल पुराना जर्जर भवन में पढ़ रहे बच्चे, समाजसेवी सीताराम ने सीएम को लिखा पत्र

सूरजपुर: बारिश के मौसम ने सूरजपुर के प्रि-मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास की पोल खोल दी है. सरकारी दावों और शाला प्रवेश उत्सव की चमक-दमक के बीच ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है. यह छात्रावास अब शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि पानी से भरा तालाब बन चुका है. यहां बच्चों को पढ़ाई से ज्यादा अपनी ज़िंदगी की चिंता करनी पड़ रही है. समाजसेवी सीताराम भास्कर जब भैयाथान निवासी अमित पैकरा (पिता पवन साय पैकरा) को छात्रावास में प्रवेश दिलाने पहुंचे, तो परिसर का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए. चारों तरफ पानी भरा हुआ था और दलदली मैदान दिखा.

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भास्कर ने तुरंत छात्रावास सूचना पटल पर दर्ज अधिकारियों से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी कॉल रिसीव नहीं हुआ. नतीजा, उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर पूरे मामले की गंभीर जानकारी दी और तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था की मांग रखी. इसके बाद भास्कर सीधे कलेक्टर एस. जयवर्धन से मिलने पहुंचे और उन्हें पूरे हालात से अवगत कराया. कलेक्टर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जल्द समाधान का आश्वासन दिया है.

गौरतलब है कि यह छात्रावास भवन लगभग 50 वर्ष पुराना है और पूरी तरह जर्जर हो चुका है. न छत सुरक्षित है, न दीवारें मजबूत. इस स्थिति में रह रहे बच्चों की ज़िंदगी खतरे में है. जहां सरकार शिक्षा के अधिकार की बात करती है, वहीं धरातल पर मासूम बच्चे कीचड़ और जलभराव के बीच शिक्षा लेने को मजबूर हैं. ऐसे में अगर कोई दुर्घटना होती है, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

एक ओर जनप्रतिनिधि शाला प्रवेश उत्सवों में माला पहनकर फोटो खिंचवाते हैं, तो दूसरी ओर ज़मीनी सच्चाई से मुंह मोड़ लेते हैं. कभी किसी नेता का नाम निमंत्रण पत्र में होता है, कभी किसी का नहीं. यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है, फिर चाहे बात भैयाथान के एकलव्य विद्यालय बंजा की हो या प्रतापपुर की. समाजसेवी सीताराम भास्कर ने मुख्यमंत्री से नवीन छात्रावास भवन की स्वीकृति की मांग की है, ताकि आदिवासी बच्चों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण मिल सके.

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