सूरजपुर: शासन-प्रशासन कागज़ों में शिक्षा को संवारने के लाख दावे करता है, मगर हकीकत ओडगी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत कुबेरपुर की प्राथमिक शाला की तस्वीर है, जहां 121 मासूमों के भविष्य की जिम्मेदारी सिर्फ़ एक शिक्षिका पर टिकी है. विद्यालय में पदस्थ शिक्षिका ममता लकड़ा अकेले बच्चों को पढ़ाने और सँभालने की जद्दोजहद कर रही हैं. नियम साफ कहते हैं कि 100 से अधिक बच्चों वाले स्कूल में कम से कम चार से पाँच शिक्षक होने चाहिए, मगर यहां दो और नियुक्ति होने के बावजूद कोई जॉइनिंग तक करने नहीं आया.
हाल यह है कि यदि शिक्षिका मीटिंग या छुट्टी पर चली जाएँ, तो पूरा स्कूल बंद हो जाता है. स्थिति यहीं तक नहीं थमती. विद्यालय का भवन जर्जर हो चुका है. बरसात में छत टपकती है, दीवारें दरक चुकी हैं और बच्चों को मजबूरी में अंतरित कक्षों में ठूँसकर बैठाया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि यह स्कूल शिक्षा का मंदिर कम और “मौत का कुआं” ज्यादा बन गया है.
ऊपर से दो साल से टूटा पड़ा सोलर ड्यूल पंप बच्चों की प्यास बुझाने तक लायक नहीं. शिकायतों और आश्वासनों का सिलसिला तो चला, लेकिन सुधार कभी नहीं हुआ. ग्रामसभा ने इस मुद्दे पर प्रस्ताव पारित किया, मगर विभागीय फाइलों में आज तक धूल फांक रहा है. अभिभावक सवाल पूछ रहे हैं कि बच्चों का भविष्य आखिर कब तक लापरवाही की भेंट चढ़ता रहेगा?
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति, भवन मरम्मत और पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई तो वे आंदोलन और पैदल मार्च के लिए सड़क पर उतरेंगे. कुबेरपुर की यह शाला सवाल खड़ा करती है– क्या बच्चों की पढ़ाई सिर्फ़ भाषणों और वादों तक सीमित रह जाएगी?