सूरजपुर: प्रसूता को झलगी पर ढोया गया, सरकार के विकास दावों की खुली पोल!

 

सूरजपुर : बुधवार दोपहर 12 बजे सूरजपुर जिले के ग्राम पंचायत बड़सरा के आमाखोखा गांव से निकली तस्वीर ने जिले से लेकर राजधानी तक शासन-प्रशासन की पोल खोल दी. घटना इतनी भयावह और शर्मनाक है कि जिसने भी सुना, दंग रह गया. 25 वर्षीय मानकुंवर, प्रसव उपरांत महिला, को स्वास्थ्य केंद्र ले जाने के लिए झलगी (खटिया) पर बैठाकर करीब एक किलोमीटर तक ढोया गया। वजह—गांव तक पहुंचने वाली सड़क जर्जर और दुर्गम है, जहाँ चार पहिया वाहन का पहुँचना नामुमकिन है.

 

सुबह 7 बजे मानकुंवर ने घर पर ही बच्चा जन्मा. परिवार ने राहत की सांस ली, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाने की चुनौती सामने थी. जैसे ही महतारी एक्सप्रेस गांव के पास पहुंची, वह घर तक नहीं जा सकी. खराब सड़क ने गाड़ी को बीच रास्ते रोक दिया. मजबूर पति इंद्रदेव सिंह और पड़ोसियों ने झलगी का सहारा लिया और महिला को कंधों पर उठाकर तकलीफों से भरे रास्ते पर ले गए.

 

यह दृश्य किसी को भी भीतर तक झकझोर सकता है। मातृत्व जैसी संवेदनशील स्थिति में महिला का दर्द और उससे जुड़ी विवशता ने मानवता को शर्मसार कर दिया। शासन-प्रशासन द्वारा किए जाने वाले विकास के तमाम दावे इस एक घटना के आगे खोखले साबित हो गए.

झूठे दावों की खुली पोल

प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन आए दिन मातृ-शिशु स्वास्थ्य योजनाओं की सफलता का गुणगान करते हैं. “हर गांव तक सड़क” और “हर घर तक स्वास्थ्य सुविधा” जैसे नारे प्रचारित होते हैं. लेकिन बड़सरा पंचायत के आमाखोखा गांव में घटी यह घटना सवाल पूछ रही है— जब प्रसूता तक को गाड़ी नहीं मिल पा रही, तो किस काम के ऐसे दावे और योजनाएं?

ग्रामीणों ने बताया कि सड़क निर्माण की मांग वर्षों से की जा रही है. चुनाव के समय नेताओं ने कई बार वादा किया, लेकिन पूरा कोई नहीं हुआ। नतीजा यह है कि मरीज, प्रसूता और बुजुर्ग आज भी अपने जीवन का सफर झलगी पर तय करने को मजबूर हैं.

मौत का कुआं बनी सड़कें

बरसात के दिनों में यह सड़क “मौत का कुआं” साबित होती है. कीचड़ और गड्ढों से भरी पगडंडीनुमा राह पर पैदल चलना भी खतरे से खाली नहीं। ऐसे में अगर कोई गंभीर मरीज या प्रसूता हो, तो उसकी जिंदगी सड़क की बदहाली पर टिकी रहती है.

मानकुंवर का मामला कोई पहली घटना नहीं है। गांववालों का कहना है कि समय-समय पर ऐसे हालात बनते हैं, लेकिन प्रशासन मौन है। नेताओं की चुप्पी और अधिकारियों की लापरवाही ने लोगों को बेबस कर दिया है।

किरकिरी और सवाल

आमाखोखा की यह तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल होते ही चर्चा का विषय बन गई। लोग कह रहे हैं कि विकास का असली चेहरा यही है, जहाँ महिला को झलगी पर बैठाकर महतारी एक्सप्रेस तक ले जाया जाता है.

अब बड़ा सवाल यह है कि शासन-प्रशासन कब जागेगा? क्या केवल आंकड़ों और कागजों पर ही विकास का ढिंढोरा पीटा जाएगा या फिर जमीनी सच्चाई को भी स्वीकार कर ठोस कदम उठाए जाएंगे?

फिलहाल, बुधवार की इस घटना ने जिले की किरकिरी तो कर ही दी है, साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो आम जनता का सब्र का बांध कभी भी टूट सकता है.

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