सूरजपुर: शिक्षा विभाग, जिसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे जिम्मेदार स्तंभ माना जाता है, सूरजपुर जिले में विभागीय मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही का पर्याय बनता जा रहा है. जिला शिक्षा अधिकारी भारती वर्मा के कार्यकाल में नियमों की लगातार अनदेखी, युक्तियुक्तकरण की अपारदर्शिता और लगातार बदलते निर्णयों से न केवल शिक्षक वर्ग में भारी असंतोष है, बल्कि आम जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच भी शिक्षा विभाग की साख पर सवाल उठने लगे हैं.
जिला शिक्षा अधिकारी भारती वर्मा के आने के बाद से ही वे लगातार किसी न किसी कर्म के चलते विवादों में घिरी रही हैं. उनके द्वारा लिए गए अनेक निर्णय शिक्षकों में भ्रम और रोष की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं. युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया इसका प्रमुख उदाहरण है. शुरुआत से ही जिले में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया मनमाने ढंग से संचालित की जा रही है. कई शिक्षकों को बिना स्पष्टीकरण के अतिशेष घोषित कर दिया गया. कुछ शिक्षकों को ऐसे स्कूलों में भेजा गया, जहां पद रिक्त ही नहीं थे या उन्हें एक ही पद पर कई बार अलग-अलग आदेश जारी किए गए.
व्याख्याता प्रियंका पांडे का मामला बना प्रशासनिक हास्य का केंद्र
व्याख्याता प्रियंका पांडे के संदर्भ में तो प्रशासन ने सारी सीमाएं लांघ दी हैं. केवल 2 महीनों में उनके लिए 4 बार पदस्थापन आदेश जारी किए गए, जिससे शिक्षक समाज में भ्रम, उपहास और रोष की स्थिति बनी.
1. पहला आदेश – 4 जून 2025: शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बोझा, जबकि वहां कोई पद रिक्त नहीं था.
2. दूसरा आदेश – 20 जून 2025: हाई स्कूल सोनगरा में यथावत रखने का आदेश.
3. तीसरा आदेश – 27 जून 2025: उच्चतर माध्यमिक विद्यालय धुमाडाड़ में पदस्थापना.
4. चौथा आदेश – 7 जुलाई 2025: पुनः उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सोनगरा के लिए अंतिम आदेश.
प्रशासनिक नियमों के अनुसार एक बार आदेश जारी होने के बाद केवल संशोधन किया जाना चाहिए, परंतु बार-बार पदस्थापन बदलने से यह पूरी प्रक्रिया शिक्षकों के बीच एक हास्य का विषय बन गई है.
शिक्षक संघों और कर्मचारियों में भारी असंतोष
शिक्षक संघों द्वारा लगातार विरोध के बावजूद शिक्षा विभाग के रवैये में कोई सुधार नहीं हुआ. संघों का आरोप है कि यह प्रक्रिया न केवल अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण है, बल्कि इससे ईमानदारी से काम करने वाले शिक्षक हताश हो रहे हैं. आम नागरिकों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी के गलत निर्णयों और अड़ियल रवैये से जिले की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है. विद्यालयों में शिक्षकों की जरूरत है, लेकिन एक व्याख्याता को चार बार इधर से उधर करना समझ से परे है.
शिक्षा विभाग की गरिमा को ठेस
यही विभाग जब मतदाता सूची, जनगणना, चुनाव ड्यूटी जैसे संवेदनशील कार्यों में अग्रणी रहता है, तो उसे अपनी आंतरिक व्यवस्थाओं में भी पारदर्शिता और जिम्मेदारी दिखानी चाहिए. लेकिन वर्तमान में विभाग न केवल अपनी गरिमा खो रहा है, बल्कि उसके निर्णय समाज में अविश्वास की भावना भी बढ़ा रहे हैं.
शिक्षा व्यवस्था को मजाक बनने से रोका जाए
शिक्षा विभाग की यह स्थिति न केवल प्रशासनिक अक्षमता का प्रतीक है, बल्कि जन विश्वास को कमजोर करने वाली भी है. शिक्षक समाज, जनप्रतिनिधि और जागरूक नागरिक मांग कर रहे हैं कि जिला शिक्षा अधिकारी के निर्णयों की जांच हो, युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया की निष्पक्ष समीक्षा की जाए और शिक्षा विभाग की साख बहाल की जाए.