सूरजपुर: जिले के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में बीट गार्डों की मनमानी और विभागीय लापरवाही ने अब ग्रामीणों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है. टुकुड़ाड़, मसगा, सोनपुर और पड़ीपा क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामीणों ने पाँच वर्षों से एक ही स्थान पर जमे बीट गार्ड नरेंद्र कुमार राजवाड़े और धीरेन्द्र सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि दोनों बीट गार्ड ने गाँव के कुछ प्रभावशाली लोगों के साथ मिलकर जंगल को खुली लूट का अड्डा बना दिया है.
ग्रामीणों का आरोप है कि जंगल की लकड़ी धड़ल्ले से बेची जा रही है. पकड़े गए माल को भी मोटी रकम लेकर छोड़ दिया जाता है. हाथी प्रभावित क्षेत्रों में समय रहते सूचना नहीं दी जाती, जिससे कई बार गाँवों में तबाही मच चुकी है. यही नहीं, जंगल किनारे पेड़ों की अवैध कटाई के बाद हुए अतिक्रमण पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती. ग्रामीणों ने बार-बार शिकायतें कीं, पंचायत सरपंचों ने आवेदन भेजे, मगर विभाग ने अब तक चुप्पी साधे रखी है.
31 अगस्त 2025 को आयोजित ग्राम सभा इस मुद्दे पर भड़क उठी. गाँव के सभी लोग एकजुट होकर खड़े हुए और दोनों बीट गार्ड को हटाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया. उस प्रस्ताव की सत्यापित प्रति आवेदन के साथ प्रतापपुर वन परिक्षेत्र कार्यालय को सौंप दी गई. इससे पहले भी 4 जून 2025 को ग्रामीणों ने शिकायत की थी, जिस पर रेंजर ने कार्रवाई का आश्वासन दिया था. लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी कोई कदम न उठने से ग्रामीणों का विश्वास विभाग से उठ गया है.
गाँववालों का कहना है कि यह सब रेंजर की मौन स्वीकृति के बिना संभव नहीं है. उनका आरोप है कि ऊपर तक संरक्षण मिला हुआ है, तभी पाँच साल से एक ही बीट पर तैनाती बनी हुई है. नियमों के अनुसार, किसी भी बीट गार्ड को इतने लंबे समय तक एक ही स्थान पर नहीं रखा जा सकता. ग्रामीणों का सवाल है कि आखिर इतनी गंभीर शिकायतों के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?
अब हालात यह हो गए हैं कि ग्रामीणों ने अल्टीमेटम दे दिया है. उनका कहना है कि यदि 15 दिन के भीतर दोनों बीट गार्ड को हटाया नहीं गया, तो मसगा, सोनपुर और चन्द्रेली के लोग वन परिक्षेत्र कार्यालय के सामने भूखभड़ताल पर बैठ जाएंगे. आवेदन में साफ-साफ लिखा गया है कि यदि इस दौरान कोई अप्रिय घटना घटती है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी विभाग और प्रशासन की होगी.
गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि जंगल ही उनकी जीवनरेखा है. वही खेतों के लिए खाद, पशुओं के लिए चारा और रोज़गार का सहारा है. लेकिन बीट गार्डों की मिलीभगत से जंगल खोखला हो रहा है और वन्य जीव परेशान होकर गाँवों का रुख कर रहे हैं. उनका कहना है कि यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो वे चुप नहीं बैठेंगे, बल्कि बड़े आंदोलन की तैयारी करेंगे.
ग्रामीणों के गुस्से और विभाग की चुप्पी ने पूरे क्षेत्र में सस्पेंस और हलचल बढ़ा दी है. लोग अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह सिर्फ दो कर्मचारियों की मनमानी है या फिर इसके पीछे विभागीय साज़िश और ऊपर तक संरक्षण का खेल छिपा हुआ है? जवाब चाहे जो भी हो, लेकिन अब ग्रामीणों का सब्र टूट चुका है और अगली लड़ाई भूखभड़ताल के मोर्चे पर लड़ी जाएगी.