बीजापुर: 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद का खात्मा करने का प्रण लेकर सरकार काम कर रही है. नक्सलवाद का अंत और हिंसा पर लगाम लगाम लगाने के लिए फोर्स दो मोर्चों पर काम कर रही है. पहला मोर्चा है माओवादियों से सीधी लड़ाई. जिसे फोर्स की भाषा में कहें तो एंटी नक्सल ऑपरेशन कहा जाता है.
सरेंडर नक्सली सीख रहे जेसीबी चलाना: एंटी नक्सल ऑपरेशन के जरिए सर्चिंग पर निकले जवान माओवादियों को न्यूट्रलाइज कर रहे हैं. माओवादियों के कोर एरिया में सर्चिंग ऑपरेशन से जवानों को लगातार बड़ी सफलताएं मिल रही हैं. दूसरे मोर्चे पर फोर्स सरेंडर कर चुके माओवादियों को रोजी रोजगार से जोड़ रही है. सरेंडर माओवादियों को स्किल डेवलपमेंट का कोर्स कराया जा रहा है. नकद राशि के साथ साथ रोजगार के साधन भी मुहैया कराए जा रहे हैं.
स्किल डेवलपमेंट का कराया जा रहा कोर्स: पुनर्वास केंद्र में रह रहे माओवादियों को जेसीबी, ट्रक ड्राइविंग, राज मिस्त्री जैसे कोर्स कराए जा रहे हैं. इसके साथ ही सरेंडर माओवादियों को ट्रेडों का व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. शासन की कोशिश है कि सरेंडर कर चुके माओवादी आसानी से समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें. अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें.
कलेक्टर और एसपी कर रहे मॉनिटरिंग: इस पूरी प्रक्रिया की मॉनिटरिंग खुद बीजापुर कलेक्टर कर रहे हैं. बीजापुर पुलिस अधीक्षक भी पुनर्वास केंद्र पर सरेंडर माओवादियों की होसला अफजाई करने आते रहते हैं. जिले के एसपी और कलेक्टर कहते हैं कि तेजी से माओवादी विचारधारा का अंत बस्तर से होता जा रहा है. वो दिन दूर नहीं है जब बस्तर से नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा. सरेंडर करने वाले नक्सली ये जान चुके हैं कि बड़े माओवादी उनके कंधे पर बंदूक रखकर अपना निजी स्वार्थ साध रहे हैं.
पुनर्वास केंद्र: पुनर्वास केंद्र के संचालक गौरव पांडे कहते हैं कि यहां सभी लोग बहुत तेजी से कौशल का काम सीख रहे हैं. यहां पर प्रशिक्षण के साथ साथ उनको अनुशाषण खेल के माध्यम से सिखाया जा रहा है. सरेंडर नक्सलियों के पुनर्वास केंद्र में खेल प्रतियोगिता का भी आयोजन होता रहता है. जीतने वाली टीम को सम्मानित भी किया जाता है. शासन की कोशिश है कि स्किल डेवलपमेंट के साथ उनको खेलों के जरिए भी जीतने की भावना जागृत की जाए. उनको आत्मविश्वास को बढ़ाया जाए.
सरकार की नई पुनर्वास नीति: पुलिस की लगातार कार्रवाई और शासन की नक्सल उन्मूलन नीति ने नक्सलियों में भय का माहौल पैदा किया है. लिहाजा बड़ी संख्या में नक्सली अब आत्मसमर्पण कर रहे हैं और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं.