सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में सिस्टम फेल! गरीब मरीज इलाज के लिए तरसे, निजी सेंटरों पर लूट

सैफई/इटावा: उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई में स्वास्थ्य सेवाओं की एक गंभीर लापरवाही सामने आई है. विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) मशीन पिछले 20 दिनों से खराब पड़ी है, जिसके कारण दूर-दराज से इलाज के लिए आने वाले मरीजों को भारी आर्थिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

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मशीन के बंद होने से मरीजों को मजबूरी में निजी जांच केंद्रों का रुख करना पड़ रहा है, जहां उन्हें एमआरआई जांच के लिए दोगुने से भी अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है.

विश्वविद्यालय में रोजाना आठ से दस जिलों – इटावा, मैनपुरी, एटा, औरैया, फर्रुखाबाद समेत आसपास के क्षेत्रों से ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) में मरीज पहुंचते हैं. इसके अतिरिक्त, ट्रॉमा सेंटर में प्रतिदिन औसतन 400 से 500 मरीज आपातकालीन स्थिति में भर्ती होते हैं, जिनमें से लगभग 80 से 100 मरीजों को सटीक निदान के लिए एमआरआई जांच की आवश्यकता होती है.

विश्वविद्यालय में जहां एमआरआई जांच का शुल्क अपेक्षाकृत कम, मात्र 3500 रुपये था, वहीं अब मशीन खराब होने के कारण इन जरूरतमंद मरीजों को बाहर निजी केंद्रों पर 7000 रुपये या उससे भी अधिक चुकाने पड़ रहे हैं. निजी जांच केंद्रों पर मरीजों से मनमानी वसूली की भी शिकायतें सामने आ रही हैं, जिससे पहले से ही परेशान मरीजों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

गरीब और मध्यम वर्ग के मरीजों के लिए यह अतिरिक्त आर्थिक बोझ असहनीय साबित हो रहा है, और कई मामलों में तो इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है. विश्वविद्यालय में स्थापित एमआरआई मशीन लगभग 17 वर्ष पुरानी है और पिछले पांच वर्षों से यह लगातार खराब होती रही है. हर बार मरम्मत के बाद कुछ दिनों तक तो मशीन ठीक चलती है, लेकिन फिर उसमें तकनीकी खराबी आ जाती है.

इस मशीन की बार-बार की खराबी को लेकर कई बार शिकायतें उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई गई हैं, लेकिन अब तक इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है.
इस गंभीर मुद्दे को दिसंबर 2023 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) मुकुल यादव ने भी विधान परिषद में उठाया था.

उस समय, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और चिकित्सा शिक्षा मंत्री बृजेश पाठक ने विश्वविद्यालय को एक नई सीटी स्कैन मशीन मिलने की जानकारी दी थी, जिसका उद्घाटन 15 अगस्त 2024 को प्रस्तावित है। हालांकि, एमआरआई मशीन की मरम्मत या नई मशीन की स्थापना को लेकर कोई ठोस आश्वासन या निर्णय नहीं लिया गया, जिससे मरीजों में निराशा व्याप्त है.

मैनपुरी से अपना इलाज कराने आए मोहम्मद इशान ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “हमारे पास पहले से ही पैसों की तंगी है, और अब हमें अपनी जांच के लिए निजी सेंटरों पर दोगुने दाम देने पड़ रहे हैं. इस महंगाई के कारण अब हमारे लिए इलाज कराना भी बहुत मुश्किल हो गया है.” इसी तरह, एटा से आए रामेश्वर यादव ने कहा, “विश्वविद्यालय में कम खर्च में जांच हो जाती थी, जिससे हमें बड़ी राहत मिलती थी. लेकिन अब बाहर जाकर महंगे दाम चुकाने पड़ रहे हैं, जो हमारी आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ रहा है.”

विश्वविद्यालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस पी सिंह ने मरीजों की परेशानी को स्वीकार करते हुए कहा, “एमआरआई मशीन की खराबी से मरीजों को हो रही कठिनाई के बारे में विभागीय अधिकारियों को लगातार सूचित किया जा रहा है. हम जल्द से जल्द मशीन को ठीक कराने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं.” हालांकि, मरीजों को अब सिर्फ आश्वासनों से संतुष्टि नहीं मिल रही है, वे चाहते हैं कि जल्द ही इस समस्या का स्थायी समाधान निकले.

यह भी उल्लेखनीय है कि जुलाई 2021 में तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार ने विश्वविद्यालय का दौरा किया था और मशीनों की खराबी के मुद्दे पर संज्ञान लिया था. उन्होंने विश्वविद्यालय को जल्द ही नई मशीनें उपलब्ध कराने का आश्वासन भी दिया था. लेकिन, अफसोस की बात है कि चार साल बीत जाने के बाद भी एमआरआई मशीन को बदलने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. यह दर्शाता है कि मरीजों की जरूरतों और विश्वविद्यालय की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के प्रति अधिकारियों की उदासीनता है.

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