Vayam Bharat

सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली ताहिर हुसैन को राहत, अंतरिम जमानत की मांग हुई खारिज

दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए AIMIM उम्मीदवार ताहिर हुसैन ने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां से उन्हें बुधवार को राहत नहीं मिली है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस पंकज मिथल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ कर रही है. जस्टिस पंकज मिथल ने ताहिर की अंतरिम जमानत की मांग रद्द कर दी. हालांकि जस्टिस अमानुल्लाह दोपहर 2 बजे अलग आदेश देंगे.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय नागरिक है और एक नागरिक के रूप में उसके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता इस मामले और पीएमएलए सहित 11 मामलों में शामिल है, एक नागरिक के रूप में उसकी विश्वसनीयता कमजोर हो जाती है. अधिकांश मामलों में, याचिकाएं फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित हैं और उनमें से कई में उन्हें जमानत दी गई है. वर्तमान मामले में यह न केवल दंगों से संबंधित है, बल्कि भारत सरकार के एक खुफिया अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या से भी संबंधित है.

उसने कहा कि आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं और कई महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ की जानी बाकी है. याचिकाकर्ता का तर्क है कि नामांकन के लिए केवल हिरासत पैरोल पर्याप्त नहीं है, यदि उसे प्रचार के लिए बाहर नहीं जाने दिया गया. यह ध्यान दिया जाता है कि चुनाव लड़ने का अधिकार हिरासत पैरोल द्वारा संरक्षित है. चूंकि चुनाव के लिए प्रचार करने का अधिकार मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है, इसलिए यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि याचिकाकर्ता को उपरोक्त उद्देश्य के लिए रिहा किया जाना चाहिए या नहीं.

अंतरिम जमानतदारों को चुनाव लड़ने की इजाजत दी तो भ्रम पैदा होगा- SC

शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतरिम जमानत देने के प्रयोजनों के लिए चुनाव लड़ने के अधिकार को एक आधार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, बल्कि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तक सीमित है. यदि ऐसी कोई याचिका उठाई जाती है तो पार्टी को नामांकन दाखिल करने की अनुमति है, लेकिन चुनाव लड़ने की नहीं. मौजूदा मामले में भी यही हुआ है.

कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा है कि यदि अंतरिम जमानतदारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी जाती है तो इससे भ्रम का पिटारा खुल जाएगा और चूंकि चुनाव साल भर होते रहते हैं, इसलिए हर कैदी आएगा और कहेगा कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं. इससे मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी. इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो अगली कड़ी में याचिकाकर्ता वोट देने का अधिकार मांगेगा, जो एक मान्यता प्राप्त अधिकार है, लेकिन आरपीए द्वारा सीमित है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा, अगर वह जेल में बंद है या पुलिस की वैध हिरासत में है.

गवाहों के प्रभावित होने की प्रबल आशंका- सुप्रीम कोर्ट

उसने कहा कि अगर याचिककर्ता को कैंपेन करने की इजाजत दी गई तो गवाहों के प्रभावित होने की प्रबल आशंका है. जमानत मिली तो इसका मतलब यह भी होगा कि याचिकाकर्ता इलाके में बैठकें करेगा और मतदाताओं से घर-घर जाकर मुलाकात करेगा. यदि याचिकाकर्ता इलाके में घूमता है तो गवाह के प्रभावति होने की संभावना अधिक है. इसके अलावा आरोप पत्र भी दायर किया गया है और यह रिकॉर्ड पर आया है कि अपराध के कमीशन में याचिकाकर्ता की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है. उसके घर को अपराध के केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था. याचिकाकर्ता अपनी लंबी हिरासत और सुनवाई पूरी न होने के आधार पर नियमित जमानत के लिए तर्क दे सकता है, लेकिन यह हमारे सामने नहीं है और हमारा हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार को हड़पने का इरादा नहीं है जहां नियमित जमानत याचिका लंबित है.

हाई कोर्ट ने क्या की थी टिप्पणी

इससे पहले हाई कोर्ट ने ताहिर को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनकी अंतरिम जमानत की मांग दिल्ली में चुनाव लड़ने को लेकर थी. उनकी रेगुलर जमानत की याचिका हाईकोर्ट में लंबित है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि चुनाव प्रचार कोई मूल अधिकार से संबंधित मसला नहीं है और ना ही किसी अन्य अधिकार से जुड़ा है.

Advertisements