प्रदेश में शिक्षाकर्मियों की फर्जी नियुक्ति के मामले गाहे बगाहे सामने आते रहते हैं और अलग-अलग जिलों से आए विभिन्न मामलों में जिसमें शिक्षाकर्मी जेल तक की हवा खा रहे हैं. उसमें अधिकांश मामले फर्जी मार्कशीट और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र के ही रहे है. लेकिन अब जो मामला सामने निकल कर आया है वह पूरे प्रदेश को हिला देने वाला है क्योंकि इस मामले में बिना नियुक्ति के नौकरी हथिया लेने का आरोप है और दस्तावेज भी अब चीख चीख कर कह रहे हैं कि मामले में जबरदस्त गड़बड़ी है. जिसकी जांच जैसे जैसे बढ़ रही है वैसे वैसे नया खुलासा हो रहा है.
प्रदेश के नामी शिक्षक नेता संजय शर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती चंद्ररेखा शर्मा की नियुक्ति को लेकर आज से करीब 10 माह पूर्व लोक शिक्षण संचालनालय में लिखित शिकायत हुई थी. तब यह शिकायत आमतौर पर आपसी रंजिश में की जाने वाली शिकायत नजर आ रही थी. लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय ने जब पूरे मामले की जांच कराई तो अधिकारियों के भी पैरों तले जमीन खिसक गई. नियोक्ता और पदस्थापना वाली संस्था ने ही यह लिखकर दे दिया है कि चंद्र रेखा शर्मा की नियुक्ति उनके यहां कभी हुई ही नहीं है और ना ही उनकी नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित कोई दस्तावेज है.
दरअसल, कागजों में चंद्ररेखा शर्मा की नियुक्ति जिला जशपुर के पत्थलगांव नगर पंचायत के द्वारा शासकीय प्राथमिक शाला दर्रापारा ( उरांवपारा ) में 11 जनवरी 2007 की बताई गई और उनका स्थानांतरण 6 माह बाद 11 जुलाई 2007 को पत्थलगांव से जनपद पंचायत बिल्हा के शासकीय प्राथमिक शाला मोपका दर्शा कर बिलासपुर में कार्यभार ग्रहण कर लिया गया. बिलासपुर के अधिकारियों ने दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति को मानकर उन्हें पदस्थापना दे दी. हालांकि गलती उनकी भी थी क्योंकि नगर पंचायत पत्थलगांव से जनपद पंचायत पत्थलगांव में ट्रांसफर नियमानुसार संभव ही नहीं था. एक नगरीय निकाय था और दूसरा जनपद, साथ ही जनपद पंचायत बिल्हा ने स्वयं NOC जनपद पंचायत पत्थलगांव के नाम पर दिया था. ऐसे में नगर पंचायत पत्थलगांव से आए फर्जी नियुक्ति और स्थानांतरण आदेश पर उन्हें नियुक्ति देना नहीं चाहिए था. साथ ही सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जो स्थानांतरण आदेश जमा किया गया उसमें सीधे चंद्ररेखा शर्मा की पदस्थापना बिल्हा जनपद पंचायत के शासकीय प्राथमिक शाला मोपका में की गई थी, जो कि संभव ही नहीं था. नगर पंचायत पत्थलगांव जनपद पंचायत बिल्हा के अधिकार क्षेत्र के स्कूल में पोस्टिंग आदेश जारी कर ही नहीं सकता था. लेकिन इसे चंद्ररेखा शर्मा का प्रभाव कहिए यह अधिकारियों की मिलीभगत, उनकी पोस्टिंग उन्हीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो गई. उसके बाद चंद्ररेखा शर्मा आज पर्यंत तक उसी स्कूल में कार्यरत हैं और उनका स्कूल शिक्षा विभाग में सविलियन भी हो गया है. मामले की पोल तक खुली जब शिकायतकर्ता राजेश धृतलहरे ने इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से की और जब DPI ने मामले की जांच कराई तब जाकर यह बात निकाल कर आई कि नगर पंचायत पत्थलगांव में चंद्ररेखा शर्मा की नियुक्ति संबंधी कोई दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं है. यही नहीं शासकीय प्राथमिक शाला दर्रापारा की प्रधान पाठक सुशीला एक्का ने शपथ पूर्वक यह बयान दिया है कि उनके स्कूल में चंद्ररेखा शर्मा के नाम से कभी किसी कर्मचारी ने कार्यभार ग्रहण किया ही नहीं है. उनके यहां उसी तारीख के आदेश के आधार पर नीलम टोप्पो की नियुक्ति अवश्य हुई है और वह अपनी सेवाएं वही दे रही हैं. जिनका नियुक्ति आदेश और अटेंडेंस वाली रजिस्टर की कॉपी प्रधान पाठक ने विभाग को सौंप दी है.
दरअसल, पूरा खेल नीलम टोप्पो के आदेश की कॉपी बनाकर खेल गया है नीलम टोप्पो का आदेश क्रमांक 229 है और RTI के जरिए जानकारी लेकर राज्यपाल से लेकर जेडी तक शिकायत करने वाले शिकायतकर्ता हरेश बजारें के अनुसार चंद्ररेखा शर्मा के सर्विस बुक में इसी आदेश क्रमांक 229 के जरिए उनकी नियुक्ति का जिक्र है. यही नहीं सविलियन के समय कार्मिक संपदा में आदेश क्रमांक 2229 बताया गया है. अब यदि उनका वास्तविक आदेश क्रमांक 229 है तो वह सीधे तौर पर फर्जीवाड़ा है क्योंकि वास्तविक में यह आदेश नीलम टोप्पो का है और यदि 2229 है तो भी फर्जीवाड़ा है. क्योंकि नगर पंचायत पत्थलगांव ने यह आदेश क्रमांक जारी ही नहीं किया है. यही नहीं शर्मा के सर्विस बुक के प्रथम पेज में बिल्हा विकासखंड के पूर्व BEO पी एस बेदी के हस्ताक्षर उनकी फोटो पर है जबकि यहां पर हस्ताक्षर पत्थलगांव के नगर पंचायत सीएमओ का होना था. उसके बाद अंदर के पेज में विकासखंड शिक्षा अधिकारी पत्थलगांव के भी हस्ताक्षर हैं यानी सर्विस बुक पुराना ही है फिर उनके फोटो को पी एस बेदी ने कैसे सत्यापित किया. इसकी भी जांच की मांग की गई है. उन्हें किस खाते में जनवरी 2007 से जुलाई 2007 तक वेतन भुगतान किया गया है उसकी भी जानकारी मांगी गई है. इस मामले में जो सबसे बड़ा खुलासा हुआ है वह यह है कि नीलम टोप्पो आदिवासी महिला है और 12वीं में उनके 65 प्रतिशत अंक हैं. इसके बाद उनकी नियुक्ति हुई है जबकि चंद्र रेखा शर्मा की 12वीं की मार्कशीट के अनुसार उनका अंक केवल 44 प्रतिशत है. ऐसे में एक ही दिन में आदिवासी महिला जिसके 65 प्रतिशत है और सामान्य वर्ग की महिला जिसका 44 प्रतिशत है, उनकी नियुक्ति संभव ही नहीं है.
इन्हीं सब को आधार बताकर आरटीआई से मिले दस्तावेजों के आधार पर अब शिकायतकर्ता हरेश बंजारे ने राज्यपाल से लेकर जेडी तक मामले की शिकायत की है और कार्रवाई न होने पर उच्च न्यायालय जाने की बात भी कही है. स्वयं जेडी बिलासपुर ने इस मामले को संज्ञान में लेकर जांच दल का गठन कर मामले की जांच शुरू कर दी है.
इधर यह माना जा रहा है कि यह इकलौता मामला नहीं है बल्कि ऐसे कई मामले और सामने निकल कर आ सकते हैं जिसमें यूं ही फर्जी नियुक्ति और स्थानांतरण के जरिए दूसरे जिलों में नौकरी हथिया ली गई होगी जिसकी जांच की मांग की जा रही है. कुल मिलाकर यह अपने आप में अचंभित कर देने वाला मामला है और इसके साथ ही फर्जीवाड़े का एक नया रैकेट प्रदेश के सामने आ सकता है, जिन्होंने शासन को अब तक लाखों करोड़ों की चोट पहुंचा दी है.