रात के अंधेरे में दहशत… खेतों में कहर बनकर टूट पड़े हाथी, वन विभाग की नाकामी से तबाही

छत्तीसगढ़ के प्रतापपुर क्षेत्र इन दिनों हाथियों के गंभीर आतंक से जूझ रहा है। हाथी दिन-रात कभी भी गांवों में घुसकर जमकर उत्पात मचा रहे हैं. धान, मक्का और अन्य फसलें रौंदकर बर्बाद की जा रही हैं। बावजूद इसके वन विभाग हाथ पर हाथ धरे तमाशबीन बना हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि विभाग न तो हाथी भगाने के लिए पर्याप्त संसाधन जुटा पाया है और न ही पीड़ित किसानों को उचित मुआवजा मिल रहा है.

ग्राम पंचायत सरहरी, करंजवार और सिंगरी में बीते दिनों दो हाथियों ने किसानों की कई एकड़ खड़ी फसलें तहस-नहस कर दीं। झरीराम कुशवाहा, विजय नारायण, मनोहर प्रसाद, धर्मेंद्र कुमार, शिवप्रसाद सहित कई किसानों की मेहनत एक झटके में मिट्टी में मिल गई. ग्रामीणों ने बताया कि हाथियों से बचाव के लिए विभाग सिर्फ दिखावे की खानापूर्ति कर रहा है.

रेंजर का गैरजिम्मेदाराना रवैया

ग्रामीणों ने बताया कि जब रात में हाथी गांव में घुस आए और रेंजर मिश्रा को सूचना दी गई तो उन्होंने टॉर्च और संसाधन उपलब्ध कराने की बजाय गैरजिम्मेदाराना जवाब दिया. उनका कहना था – “स्टाफ को 50-60 हजार वेतन मिलता है तो वही लोग इंतजाम करेंगे.” इस कथन से ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है और उन्होंने रेंजर की कार्यशैली को नाकामी बताते हुए तत्काल हटाने की मांग की है.

मुआवजा – ऊंट के मुंह में जीरा

किसानों का कहना है कि विभाग द्वारा फसल नुकसान का मुआवजा केवल 22 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दिया जा रहा है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार की दर 3100 रुपये प्रति क्विंटल है। विभाग का यह मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है. किसानों ने शासन-प्रशासन से मांग की है कि वास्तविक नुकसान का मूल्यांकन कर उचित राशि दी जाए.

किसानों का दर्द… विजय नारायण कुशवाहा बोले

किसान विजय नारायण कुशवाहा ने कहा – “हम किसान रात-रात भर रतजगा कर रहे हैं। बारिश में खून-पसीना एक करके जो फसल उगाई, उसे हाथी रौंद रहे हैं। विभाग के लोग आते हैं, लेकिन कुछ देर बाद वापस चले जाते हैं। न तो हाथी भगाने की कोई ठोस व्यवस्था है और न ही हमें सही मुआवजा मिल रहा है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो किसान आंदोलन के लिए मजबूर होंगे.”

ग्रामीणों की चेतावनी

ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर शीघ्र ही हाथियों को खदेड़ने की ठोस पहल और उचित मुआवजा नहीं दिया गया, तो वे उग्र आंदोलन, चक्का जाम और धरना-प्रदर्शन के लिए मजबूर होंगे.

Advertisements
Advertisement