साढ़े तीन साल का एक बच्चा खेल-खेल में बल्ब निगल गया. यह बल्ब एक खिलौने का था. इसके बाद बच्चे को सीने में दर्द होने लगा. घरवाले इलाज के लिए उसे मुंबई के जसलोक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र लाए. यहां डॉक्टरों ने मासूम बच्चे के फेफड़े से बल्ब को सफलतापूर्वक बाहर निकाला. यह बल्ब उसके शरीर में लगभग तीन महीने से फंसा हुआ था और इसी वजह से बच्चा लगातार खांसी हो रही थी. साथ ही उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी.
शुरुआत में जब बच्चे के लक्षण सामने आए तो डॉक्टरों को लगा कि उसे निमोनिया है. इस आधार पर कई बार एंटीबायोटिक दवाओं से उसका इलाज किया गया. इलाज और व्यापक देखभाल के बावजूद उसकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ.
फेफड़े के सीटी स्कैन में निकला बल्ब
बच्चे का सीटी स्कैन कराया गया. जांच में सामने आया कि उसकी बाए फेफड़े की ओर जाने वाली नली में किसी धातु का टुकड़ा फंसा हुआ है. यह डॉक्टरों के लिए चौंकाने वाला था. बच्चे के परिवार ने उसे पहले कोल्हापुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया, जहां लचीली ब्रोंकोस्कोपी (Flexible Bronchoscopy) की मदद से उस धातु को निकालने की कोशिश की गई. लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया और बच्चे की परेशानी बनी रही.
ऐसे में परिवार ने उसे मुंबई के जसलोक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र लाने का फैसला किया. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने बच्चे की ब्रोंकोस्कोपी की, जिसके दौरान पता चला कि एक एलईडी बल्ब फंसा हुआ है. बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह बल्ब किसी खिलौना कार से संबंधित था, जिसे बच्चे ने खेल-खेल में निगल लिया था और वह उसके फेफड़े तक पहुंच गया.
डॉक्टरों ने बल्ब को निकाला
इस जटिल स्थिति से निपटने के लिए डॉक्टरों ने एक छोटी थोरैकोटॉमी (Thoracotomy) प्रक्रिया अपनाई. यह एक शल्य चिकित्सा पद्धति है, जिसमें सीने को चीरा लगाकर फेफड़े तक पहुंचा जाता है. डॉ. विमेश राजपूत और डॉ. दिव्य प्रभात के नेतृत्व में हुई इस सर्जरी के दौरान बल्ब को सावधानीपूर्वक निकाल लिया गया.
सर्जरी के सफल होने के बाद बच्चे की स्थिति में तेजी से सुधार देखा गया. उसकी समस्या पूरी तरह खत्म हो गई और फेफड़े की कार्यक्षमता भी सामान्य हो गई. डॉक्टरों ने बताया कि इस तरह के मामले बेहद दुर्लभ होते हैं.