बिलासपुर हाईकोर्ट में फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें पति ने कहा कि, वो बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्त्रोत नहीं है। जबकि, उसकी पत्नी नौकरी करती है।
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे की शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी से पिता खुद को अलग नहीं कर सकता, चाहे वह बेरोजगार ही क्यों न हो। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने कहा कि पढ़ी-लिखी और कमाने वाली पत्नी होने के बावजूद बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है।
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दरअसल, रायगढ़ निवासी दंपती विवाद के बाद अलग रह रहे हैं। उनका करीब 4 साल का बेटा है। वह रायगढ़ के कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है। पत्नी ने रायगढ़ के फैमिली कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 127 के तहत भरण-पोषण देने की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। जिस पर फैमिली कोर्ट ने पति को मां और बेटे को हर माह 6 हजार रुपए अंतरिम खर्च के तौर पर देने का आदेश दिया।
फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ लगाई याचिका
इस पर पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका लगाई। इसमें बताया कि वह बेरोजगार है, उसके पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है। विशेषकर कोरोना काल के बाद से उसके पास कमाई का कोई जरिया नहीं रह गया है।
इसके साथ ही बताया कि, पत्नी अपने पिता के स्कूल में शिक्षिका है। उसकी आमदनी भी अच्छी है। यह भी तर्क दिया कि दोनों पक्षों के बीच पहले ही समझौता डिक्री हो चुकी है, लिहाजा नया आदेश गलत है।
बच्चे का पालन पोषण सिर्फ मां की जिम्मेदारी नहीं
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि, बच्चा प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई कर रहा है। उसके लिए पर्याप्त आर्थिक मदद जरूरी है। बच्चे की भलाई सर्वोपरि है। भरण-पोषण से संबंधित जिम्मेदारी सिर्फ मां की नहीं हो सकती।
हाईकोर्ट ने कहा- न्यायसंगत है फैमिली कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को न्यायसंगत, निष्पक्ष और कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप मानते हुए पति की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। साथ ही कहा कि बच्चे की जरूरतों को देखते हुए हर माह 6 हजार रुपए उचित है। कोर्ट ने आदेश की कॉपी ट्रायल कोर्ट को तत्काल भेजने के निर्देश दिए।