नक्सलियों के निशाने पर देश के बड़े उद्योगपति हैं. आर्सेलर मित्तल की जमीन पर लाल झंडा गाड़ने वाले नक्सलियों ने अब अडानी, अंबानी और टाटा जैसे उद्योगपतियों को निशाने पर लिया है. नक्सलियों ने फरमान जारी कर कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए आदिवासी किसानों की जमीन हथियाना चाहती है.
सरकार विकास के नाम पर आदिवासियों की खेती की जमीन का अधिग्रहण कर अडानी, अंबानी, टाटा, एस्सार, एनसीएल और देव मैनिंग जैसे बड़े उद्योगपतियों को देना चाहती है.यह फरमान बस्तर डिवीजनल कमेटी ने जारी किया है. नक्सलियों ने आदिवासियों से कहा है कि वे सर्वे करने आने वाले अधिकारियों को मार भगाएं.
नक्सलियों ने किया रेल परियोजना का विरोध
बस्तर में शुरू होने वाली रेल लाइन परियोजना पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. नक्सलियों ने इस रेल परियोजन का विरोध करना शुरु कर दिया है. नक्सलियों की बस्तर डिवीजनल कमेटी ने चिट्ठी जारी कर आदिवासियों से इस परियोजना के विरोध में आंदोलन करने का फरमान जारी किया है. नक्सलियों ने कहा है कि यह रेल लाइन बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बिछाई जा रही है.
इस रेल लाइन के बहाने केंद्र और राज्य सरकार आदिवासी किसानों की खेती की जमीन को अडानी, अंबानी, टाटा, एस्सार, एनसीएल और देव मैनिंग जैसे बड़े उद्योगपतियों के हवाले करना चाहती है. पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी के सचिव मोहन ने यह पत्र जारी किया है. इस पत्र में कहा गया है कि ये बड़े उद्योगपति खनिज, आयरन का उत्खनन कर जनता को लूटने के लिए आ रहे हैं. इस उत्खनन का विरोध दशकों से चल रहा है. यदि ऐसा हुआ तो आदिवासियों को रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाएगा.
सर्वेयर को मार भगाओ
नक्सलियों ने अपने फरमान में कहा है कि जो अधिकारी रेलवे लाइन के दूसरे और तीसरे चरण का सर्वे करने आ रहे हैं. उनको पकड़कर जन अदालत में ले जाओ और मार भगाओ. दरअसल नक्सली क्षेत्रों में विकास के लिए केंद्र सरकार ने दो रेलवे परियोजना को मंजूरी दी है. गढ़चिरोली से बीजापुर बचेली तक 490 किलोमीटर की रेलवे लाइन बिछाई जा रही है. वहीं कोरबा से अंबिकापुर तक 280 किलोमीटर तक रेलवे लाइन बिछाई जानी है. केंद्र सरकार ने इसके सर्वे के लिए 16 करोड़ 75 लाख रुपए भी मंजूर कर दिए हैं। इसी के तहत इन रेल परियोजना के सर्वे का काम शुरु किया जाना है. पत्र में लिखा है कि इस परियोजना से किसानों की कृषि भूमि पर कब्जा किया जाएगा.
गांव और घरों पर विनाश का खतरा मंडरा रहा है। इससे आदिवासी परंपराएं खत्म हो जाएंगी. छोटे कुटीर उद्योग नष्ट हो जाएंगे. रेलवे से बड़े उद्योगपतियों के माल की ढुलाई होगी, खुदरा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा ऐसे में यहां पर काम करने वाले आदिवासियों को भूखे मरने की नौबत आ जाएगी. इस परियोजना के लिए 1 अक्टूबर से सर्वे का काम शुरु होना है.