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15 अगस्त को देश को मिलेगा ISRO से गिफ्ट… लॉन्च होगा EOS-8 सैटेलाइट, देगा आपदाओं का अलर्ट

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जल्द ही अपने लेटेस्ट अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट यानी EOS-8 की लॉन्चिंग करने वाला है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से होगी. 175.5 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट पर्यावरण की मॉनिटरिंग, आपदा प्रबंधन और तकनीकी डेमॉन्स्ट्रेशन का काम करेगा.

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EOS-8 में तीन विशेष स्टेट-ऑफ-द-आर्ट पेलोड हैं- इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इंफ्रारेड पेलोड (EOIR), ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R) और सिक यूवी डोजीमीटर (SiC UV Dosimeter). इसमें EOIR दिन और रात में मिड और लॉन्ग वेव की इंफ्रारेड तस्वीरें लेगा. यह सैटेलाइट 15 अगस्त को सुबह 9.17 बजे लॉन्च किया जाएगा.

लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाएगा

इन तस्वीरों से आपदाओं की जानकारी मिलेगी. जैसे जंगल में आग, ज्वालामुखीय गतिविधियां. GNSS-R के जरिए समुद्री सतह पर हवा का विश्लेषण किया जाएगा. मिट्टी की नमी और बाढ़ का पता किया जाएगा. वहीं SiC UV डोजीमीटर से अल्ट्रावायलेट रेडिएशन की जांच की जाएगी. जिससे गगनयान मिशन में मदद मिलेगी.

कम्यूनिकेशन और पोजिशनिंग में करेगा मदद

EOS-8 सैटेलाइट धरती से ऊपर निचली कक्षा में चक्कर लगाएगा यानी 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर. यहीं से यह सैटेलाइट कई अन्य तकनीकी मदद भी करेगा. जैसे इंटीग्रेटेड एवियोनिक्स सिस्टम. इसके अंदर कम्यूनिकेशन, बेसबैंड, स्टोरेज और पोजिशनिंग (CBSP) पैकेज होता है. यानी एक ही यूनिट कई तरह के काम कर सकता है. इसमें 400 जीबी डेटा स्टोरेज की क्षमता होती है.

SSLV रॉकेट से पूरी जाएगी उड़ान

इस मिशन की उम्र एक साल है. अगर ज्यादा चल जाए तो उतना बेहतर. इसे अंतरिक्ष में ले जाने के लिए SSLV रॉकेट का इस्तेमाल होगा. यानी स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल. SSLV-D3 में डी3 का मतलब है तीसरी डिमॉन्स्ट्रेशन फ्लाइट. यह रॉकेट मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए बनाया गया है.

इस लॉन्चिंग के बाद SSLV को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिल जाएगा. इससे पहले इस रॉकेट के दो उड़ान हो चुके हैं. पहली उड़ान SSLV-D1 7 अगस्त 2022 को हुई थी. अगली उड़ान यानी SSLV-D2 10 फरवरी 2023 को की गई थी. इसमें तीन सैटेलाइट भेजे गए थे. EOS-07, Janus-1 और AzaadiSAT-2.

क्या काम करेगा ISRO का ये रॉकेट?

SSLV का इस्तेमाल छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए होता है. यह एक स्मॉल-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है. इससे धरती की निचली कक्षा में 500kg तक के सैटेलाइट्स को 500km से नीचे या फिर 300kg के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेज सकते हैं. इस ऑर्बिट की ऊंचाई 500km के ऊपर होती है.

72 घंटे में बनकर तैयार हो जाता है SSLV

SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. SSLV का वजन 120 टन है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है. फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से लॉन्च किया जाता है.

तमिलनाडु में बन रहा है नया स्पेसपोर्ट

इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बनाया जा रहा है. तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेसपोर्ट बन रहा है. फिर एसएसएलवी की लॉन्चिंग वहीं से होगी. SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी के बनने का इंतजार करना पड़ता था. वो महंगा भी पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके भेजना होता था.

PSLV से पांच-छह गुना सस्ता है SSLV

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. इसलिए ISRO ने यह रॉकेट बनाया. एक SSLV रॉकेट पर 30 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपए आता है.

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