कांकेर: परलकोट क्षेत्र में 9 अगस्त की सुबह अवधपुर गांव के जलाशय के बांध में दरार पड़ गई. इसकी जानकारी जैसे ही गांव वालों तक पहुंची, पूरे गांव के लोग अनाज और जरूरी सामानों के साथ सुरक्षित स्थान की ओर जाने लगे.
डर के साये में जी रहे लोग: बांध में दरार की खबर प्रशासन तक पहुंचते ही प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचकर दरार को भरने की कोशिश करता नजर आया. अलग अलग तरीके से दरार को भरने की लगातार कोशिश की जा रही है. हालांकि तीन दिन बीतने के बाद भी अब तक दरार को भरने में प्रशासन और विभाग पूरी तरह असफल है. जलाशय में पानी का दवाब कम होने के बाद भी दरार का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे तीन गांवों के लोग डर के साये में जी रहे हैं.
लापरवाही के कारण खतरें में लोगों की जान: बताया जा रहा है कि प्रशासन और विभाग की लापरवाही के कारण तीन गांवों के लोगों की जिन्दगी अब खतरे में आ गई है. लोग अपने जरुरी सामान, अनाज और परिवार के सदस्यों को लेकर सुरक्षित स्थान की ओर रूख कर रहे हैं. परलकोट क्षेत्र के पीवी 133 स्थित जलाशय के बांध में दरार पड़ चुकी है. जलाशय से बड़ी तेजी से पानी निकल रहा है, जिससे अब बांध के टूटने का खतरा मंडरा रहा है.
तीन साल पहले से है दरार: बताया जा रहा है कि इस जलाशय में 3 साल पहले से दरार पड़ चुकी थी, जिसकी जानकारी ग्रामीणों की ओर से लगातार सिंचाई विभाग सहित प्रशासन को दी जा रही थी. ग्रामीणों ने जनदर्शन में भी इस खतरे को लेकर आवेदन दिया था. हालांकि हर बार रिपेयरिंग के नाम पर विभाग की ओर से बस लीपापोती ही की गई है, जिसका खामियाजा अब ग्रामीणों को उठाना पड़ सकता है.
मिट्टी भरने का काम जारी: इस मामले में जल संसाधन विभाग जगदलपुर के एसई केएम भंडारी और कार्यपालक अभियंता कांकेर ने कहा कि, “पानी का स्तर लीकेज वाले स्थान तक पहुंचने के बाद रेत-मिट्टी की बोरियों से पूरे जगह को सील किया जाएगा. एक हजार बोरियों की व्यवस्था कर मिट्टी भरने का काम किया जा रहा है.”
पुराना कंस्ट्रक्शन होने के कारण दरार की आशंका: पीवी-133 के सिंचाई बांध का निर्माण साल 1885 में डीएनके प्रोजेक्ट के तहत किया गया था. पुराने गेट में बार-बार लीकेज आने लगा था. पुराने निर्माण के दौरान बिना छड़ आदि के पत्थरों को रखकर उसकी जुड़ाई कर दीवार बनाकर गेट बनाया गया था. निर्माण पुराना होने के कारण पानी का दबाव नहीं झेल पाया और पत्थरों के बीच आए गैप से दीवार में दरार आ गई, जो बढ़ती चली गई.
बता दें कि पुराने गेट के पीछे ही एक नया क्रांक्रीट का गेट बनाया गया, लेकिन पुराने गेट को बंद नहीं किया गया. इस कारण समस्या बनी रही. दूसरे चरण में साल 2009 में छत्तीसगढ़ शासन ने निर्माण का काम पूरा कराया है. इसी दौरान एक नया गेट पहाड़ी की ओर बनाया गया. नए गेट और दीवार में लोहे की छड़ रखकर दीवार बनाई गई, जहां लीकेज नहीं है.